किसी भी कल्याणकारी राज्य में सरकार का पहला कर्तव्य उसके नागरिकों के स्वास्थ्य या चिकित्सा और शिक्षा पर सबसे ज्यादा ध्यान दे। लेकिन देश का सबसे सबसे मकबूल नेता अपने दस साल के शासन के बाद भी जब चुनाव जीतने के लिए अपने भाषणों में लाक्षणिक रूप से मछली, मीट, मंगलसूत्र और मुसलमान कह कर डराये, तर्क की जगह वितंडावाद का सहारा ले और नितांत व्यक्तिगत धार्मिक कर्मकांड को चुनाव प्रचार का हिस्सा बनाये तो देश का भविष्य सही हाथों में नहीं माना जा सकता है।
140 करोड़ जनता का भविष्य किन हाथों में?
- विचार
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- 23 May, 2024

प्रतीकात्मक तस्वीर।
जब चुनाव मंचों से लाक्षणिक भाषा में किसी पहचान-समूह को लक्षित कर “मंगलसूत्र”, “औरंगजेब” या “मीरजाफर” कहते हैं तो दो समुदायों के बीच अविश्वास घृणा बन जाता है। घृणा-आधारित खंडित समाज किसी भी जीडीपी के आयतन से रफू नहीं किया जा सकता है।
स्वास्थ्य पर भूटान-श्रीलंका मीलों आगे
दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकॉनमी में स्वास्थ्य के मद में सरकार का प्रति-व्यक्ति सालाना खर्च (25 डॉलर) है जबकि भूटान 2.5 गुना, श्रीलंका तीन गुना, थाईलैंड दस गुना और ब्रिक्स के तमाम देश जैसे चीन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका 14-15 गुना ज्यादा खर्च करते हैं। चिंता सिर्फ यह नहीं है कि भारत की सरकार बेहद कम खर्च कर जनता को अपनी गाढ़ी कमाई इलाज में लगाने को मजबूर करती है, बल्कि यह कि पिछले दस वर्षों में केंद्र का खर्च लगभग वहीं का वहीं रुका है जबकि राज्य की सरकारें मजबूरन अपना व्यय इसी काल में डेढ़ गुना की हैं।