मैं नहीं कहती कि लेखन विनम्रता भरा ही हो। अपनी बात पूरे ज़ोर के साथ कही जा सकती है। ध्यान यह भी रहे कि किसी का अपमान तो नहीं हो रहा। किसी को आहत करने की मंशा से तो नहीं बोला या लिखा जा रहा। व्यक्तिगत विद्वेष की बू तो नहीं आ रही। वैसे जो कुछ मैं यहाँ कह रही हूँ, सब खामख्याली है।
क्या इसलिये लोग इसे जनाना लेखन कहते हैं?
- विचार
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- 27 Jul, 2023

मैत्रेयी पुष्पा
बताइये घरों से निकलकर आपने क्या किया? वही द्वेष, दूसरे को नीचा दिखाने की साज़िशें और बदनाम करने के पुराने हथकंडे। क्या यही होता है साहित्यक वातावरण?
पिछले महीनों में ऑनलाइन प्रोग्राम खूब हुये हैं। लेखक लेखिकाओं का यह साझा मंच साहित्यक वार्ताओं से गुलज़ार रहा। आपसी मैत्री का माध्यम बना। यह भी माना जा सकता है कि लिखने से ज्यादा सक्रियता इन मंचों पर दिखाई दी। कारण यह भी हो सकता है कि आप जहाँ हो यदि नेटवर्क वहाँ आता है तो आप प्रोग्राम में शामिल हो सकते हैं। मैं भी ज़्यादातर कार्यक्रमों में शामिल रही। जो सोचा, वह बोला। नहीं तो जो उस समय बन पड़ा वही बोल दिया। माना यही कि लेखन पर, लेखक और लेखिकाओं पर ईमानदारी से हमारा वक्तव्य जाये। साथ ही हमारे अध्ययन को भी प्रमाणित करे।
मैत्रेयी पुष्पा जानी-मानी हिंदी लेखिका हैं। उनके 10 उपन्यास और 7 कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें 'चाक'