मुझे नहीं मालूम कि आने वाली सदियाँ गांधी को कैसे याद करेंगी लेकिन इतना मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि मोदी को ज़रूर याद करेंगी कि कैसे एक साँस लेते हुए लोकतंत्र का धीरे-धीरे गला घोंटा गया और एक सहिष्णु समाज को असहिष्णुता में बदल दिया गया। मुझे नहीं मालूम कि जब सदियाँ यह आकलन कर रही होंगी तो उस वक़्त देश में लोकतंत्र होगा या नहीं। लेकिन इतना ज़रूर विश्वास है कि लोकतंत्र की याद ज़रूर लोगों के आँखों में आँसू लेकर आयेगी।