उमर खालिद की ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के जज जुमला, चंगा, इंक़लाब शब्दों पर क्यों उखड़े? क्या ये शब्द किसी भी रूप में आपत्तिजनक हैं?
देश की अदालतों में लंबित मामले चिंता की कितनी बड़ी वजह होने चाहिए? 4 करोड़ से ज़्यादा लंबित मामले हैं। तो प्राथमिकता लंबित मामलों का निपटारा या फिर न्याय मिलने की भाषा होनी चाहिए?
दिल्ली हाई कोर्ट ने अनुराग ठाकुर और परवेश वर्मा और उमर खालिद के मामले में बीते दिनों में कुछ टिप्पणियां की हैं, क्या ये टिप्पणियां न्याय व्यवस्था के चाल, चरित्र और चेहरे में आ रहे चिंताजनक बदलाव का संकेत हैं?
हाल के महीनों में बुलडोजर का इस्तेमाल क्या डर पैदा करने के लिए किया जा रहा है? दिल्ली के जहांगीरपुरी या फिर मध्य प्रदेश के खरगोन में हिंसा के बाद इसका इस्तेमाल क्यों किया गया?
बिहार के क्रांतिकारी बाबू कुंवर सिंह को केंद्र एवं बिहार राज्य सरकार ने बहुत शिद्दत से याद किया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि ऐसी ही भावना इस गदर के दूसरे अन्य क्रांतिकारियों के प्रति भी रखी जाएगी। जिनमें बरेली के नवाब खान बहादुर खान का भी नाम शुमार है।
इस्लाम में रमज़ान का महीना बहुत पवित्र माना जाता है। लेकिन दूसरी तरफ अफगानिस्तान की मस्जिदों में बम धमाके हो रहे हैं, जिनमें अनगिनत नमाज़ी मारे गए हैं। आखिर वो कौन मुसलमान हैं जो ऐसे कारनामों को अंजाम दे रहे हैं। क्या उन्हें मुसलमान कहा जाना चाहिए।
प्रसिद्ध चिन्तक प्रताप भानु मेहता ने अपने हालिया लेख में इस बात पर चिन्ता जताई है कि धार्मिक जुलूसों की आड़ में देश किस तरफ बढ़ रहा है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि साम्प्रदायिकता पर लिखना अब फिजूल बात हो गई है। वो चिन्तित हैं कि विचाराधारत्मक हिंसा का मुकाबला करने कोई सामने नहीं आ रहा है।