loader

विभाजन की विभीषिका को किस तरह याद रखें?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राय है कि अब से 14 अगस्त को विभाजन की विभीषिका के दिवस के तौर पर मनाना चाहिए। 14 अगस्त भारत के लिए आधिकारिक तौर पर विभाजन विभीषिका दिवस है। 

किसी ख़ास घटना का कोई दिवस मनाना किसी स्मृति को अक्षुण्ण रखना है। निश्चय ही हमें विभाजन की विभीषिका भी याद रखनी चाहिए। इस विभीषिका ने सैकड़ों-हज़ारों नहीं, लाखों घर उजाड़े थे। लेकिन यहां दो प्रश्न हैं? पहला प्रश्न यह है कि 14 अगस्त को ही हम यह दिन क्यों मनाएं? इसका सहज और स्वाभाविक उत्तर है कि इसी दिन विभाजन पूर्ण हुआ था- यानी पाकिस्तान के भारत से अलग होने पर अंतिम मुहर लगी थी। 

मगर यह विभाजन दिवस हो सकता है, विभाजन विभीषिका दिवस नहीं, क्योंकि विभाजन की विभीषिका तो इसके पहले शुरू हो चुकी थी और इसके बाद तक चलती रही थी।

कौन था गुनहगार? 

बेशक, इस विभीषिका का कारण विभाजन था, लेकिन विभाजन की वजह क्या थी? विभाजन का गुनहगार कौन था? इसका जवाब बहुत सारे लोगों ने तरह-तरह से देने की कोशिश की है। निस्संदेह, अंग्रेज़ विभाजन के पहले गुनहगार थे। वे अपनी राजनीतिक ज़रूरतों के लिए पहले हिंदू-मुसलमान को बांटते रहे और फिर उन्होंने हिंदुस्तान को बांट दिया। 

भारत में एक व्यापक तौर पर स्वीकृत नज़रिए से देखें तो इसके दूसरे गुनहगार मुसलिम लीगी थे जिन्होंने जिन्ना के नेतृत्व में धर्म के आधार पर अलग राज्य की मांग को वहां तक पहुंचा दिया जहां एक मुल्क का नक़्शा मेज़ पर रखकर दो हिस्सों में बांट दिया गया। लेकिन इस विभाजन के गुनहगार और भी थे। 

ताज़ा ख़बरें

विभाजन की आठ वजहें

डॉ. राममनोहर लोहिया ने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की किताब पर टिप्पणी करते हुए भारत विभाजन के गुनहगारों पर जो एक पूरी किताब लिख डाली है, उसकी भूमिका में वे इस विभाजन की आठ वजहें बताते हैं। दिलचस्प ढंग से इनमें अंग्रेज़ों और मुसलिम लीग की भूमिका के अलावा वे न जाने क्यों गांधी जी की अहिंसा को भी ज़िम्मेदार मानते हैं और भारतीय जनता के अधैर्य को भी। लेकिन बंटवारे की आठवीं वजह वे हिंदू अहंकार को मानते हैं। 

बहरहाल, विभाजन की विभीषिका की स्मृति के लिए किसी दिन की तलाश ही करनी थी तो उसके लिए कुछ और दिन भी हो सकते थे- मसलन, 16 अगस्त, 1946 का दिन, जब मोहम्मद अली जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन का एलान किया था और तब के कलकत्ता में सुहरावर्दी ने हड़ताल घोषित की थी।

आख़िर भारत के विभाजन के लिए कौन था ज़िम्मेदार?, देखिए, वीडियो- 

लेकिन इस दिन का ख़तरा यह है कि सारी की सारी सांप्रदायिकता मुसलिम राजनीति के हवाले हो जाएगी और इतिहास का वह पन्ना अधूरा रह जाएगा जिस पर दोनों कौमों के हस्ताक्षर मिलते हैं। बेशक, बीजेपी को फिर भी यह कहीं ज़्यादा रास आता। लेकिन शायद प्रधानमंत्री पाकिस्तान के स्वाधीनता दिवस को विभाजन की विभीषिका से जोड़कर देखने में भारतीय राष्ट्रवाद का ज़्यादा उफान पाते होंगे। 

महीनों तक चली विभीषिका 

यहीं से वह दूसरा छूटा हुआ प्रश्न सामने आता है- हम विभाजन विभीषिका दिवस क्यों मनाना चाहते हैं? ऐसा कोई दिन क्यों याद रखना चाहते हैं? क्योंकि भारत के विभाजन की विभीषिका के लिए कोई एक दिन निर्धारित नहीं किया जा सकता- इसके लिए हर दिन अधूरा और अपर्याप्त जान पड़ेगा, क्योंकि यह विभीषिका किसी एक दिन का नतीजा नहीं थी- यह महीनों चली। 

यह दुनिया के सर्वाधिक भयावह विस्थापन वाली परिघटना साबित हुई- ऐसी घटना जिसमें ट्रेनें लाशें लेकर सरहदों के आर-पार आती-जाती थीं। कृश्न चंदर ने इस पर ‘पेशावर एक्सप्रेस’ जैसी यादगार कहानी भी लिखी है।

14 अगस्त की तारीख़ इसलिए त्रुटिपूर्ण है कि विभाजन की यह विभीषिका 14 अगस्त के बाद भी जारी रही थी। इस विभीषिका का चरम 30 जनवरी, 1948 की शाम महात्मा गांधी की हत्या के रूप में आया। बल्कि कहते हैं, इसी के बाद इस विभीषिका पर बड़ी लगाम लगी। 

अचानक गांधी के शोक में डूबे देश ने हथियार रख दिए, नफ़रत को किन्हीं नालियों में बहाने की कोशिश की और ठंडे दिमाग से सोचना चाहा कि उसने इन महीनों में किया क्या है। 

श्रेय छीनने की कोशिश? 

लेकिन जो लोग चुपचाप गांधी से आज़ादी की लड़ाई का श्रेय छीन लेना चाहते हैं, जो चुपके से यह झूठ स्थापित करना चाहते हैं कि भगत सिंह की फांसी रुकवाने के लिए गांधी जी ने कुछ नहीं किया या फिर जो सुभाषचंद्र बोस से उनके मतभेदों को कुछ इस तरह उछालते हैं कि गांधी जैसे बोस के पूरी तरह ख़िलाफ़ थे, जो गोडसे की मूर्तियां बनवाने वालों को बढ़ावा देते हैं, वे लोग कैसे गांधी की पुण्यतिथि को विभाजन विभीषिका दिवस के रूप में मनाना चाहेंगे? 

क्योंकि अगर वे ऐसा करेंगे तो उन्हें फिर बार-बार याद करना होगा कि गांधी को किसने और क्यों मारा था? फिर उनके लिए यह दिवस मनाने की वजह भी बदल जाएगी। 

दरअसल, किसी तारीख़ का चुनाव बताता है कि हम किसी घटना को किस तरह देखना चाहते हैं। हमारे लिए अपने दुख, संताप या अपने साथ घटी किसी त्रासदी का क्या मतलब है? हम उससे क्या सबक लेना चाहते हैं?

इस मोड़ पर यह दिखाई पड़ता है कि कम से कम विभाजन और उसकी विभीषिका से बीजेपी और उसके परिवार की वैचारिकी कोई सबक लेने को तैयार नहीं है। उसे अखंड हिंदू राष्ट्र को तोड़ने वाला एक खलनायक चाहिए जो पाकिस्तान है और 14 अगस्त की तारीख़ यह याद दिलाती रहेगी।

बंटवारे की सोच

लेकिन सच क्या है? सच ये है कि विभाजन का ख़याल सिर्फ अल्लामा इक़बाल, जिन्ना या मुसलमानों को ही नहीं आया था, उसके पहले वह हिंदू आंदोलनकारियों में भी तैर रहा था। भाई परमानंद, लाला लाजपत राय और सावरकर तक अलग-अलग ढंग से देश के बंटवारे का नक़्शा सुझा रहे थे। 

कांग्रेस के भीतर बहुत सारे तत्व थे जो गांधी और नेहरू की ‘सर्व धर्म समभाव’ वाली नीति से अलग राय रखते थे और वह रेखा खींच रहे थे जो धीरे-धीरे जिन्ना को दूर और अबुल कलाम आज़ाद जैसे नेताओं को अकेला करती चली गई। रही-सही कसर पूरी करने के लिए मुसलिम लीग थी ही जिसे आरएसएस की स्थापना से मदद ही मिली।

दरअसल, जो बंटवारा हुआ, उसकी भी एक दुर्व्याख्या हमारे यहां मौजूद है। यह मान लिया जाता है कि पाकिस्तान मुसलमानों के लिए बना और हिंदुस्तान हिंदुओं के लिए बना। इस नज़रिए से भारत में रह गए मुसलमानों को दरअसल पाकिस्तान चले जाना चाहिए था।

जबकि बंटा बस एक देश था जो भारत था- वह भारत, जिसमें सबको साथ और मिल-जुल कर रहना था। पाकिस्तान उन लोगों के लिए बना जो मानते थे कि धर्म के आधार पर मुल्क बंट सकते हैं। बेशक, उनके अलावा इस पाकिस्तान में वे बहुत से लोग भी जाने को मजबूर हुए जो धर्म के आधार पर राष्ट्र की परिकल्पना पर भरोसा नहीं करते थे मगर जिनकी धार्मिक पहचान की वजह से उन्हें भारत से पाकिस्तान जाना पड़ा। तो एक धर्म का मुल्क बस पाकिस्तान था- भारत हमेशा से बहुधर्मी, बहुभाषी देश और समाज रहा। 

Why Modi government announced india partition horrors day - Satya Hindi
बल्कि पाकिस्तान में भी अरसे तक बहुत सारे लोगों को भरोसा रहा कि यह विभाजन टिकेगा नहीं। लेकिन इतिहास की खींची रेखाएं आने वाले दिनों में अविभाज्य दीवारों में बदलती चली गईं- क्योंकि वे रेखाएं भूगोल से पहले हमारे मन पर खिंचती जा रही थीं।
विचार से और ख़बरें

ऊंची जातियां जिम्मेदार? 

दिलचस्प यह है कि लोहिया अपनी किताब ‘बंटवारे के गुनहगार’ में कहीं यह भी महसूस करते दिखाई पड़ते हैं कि बंटवारा ऊंची जातियों की वजह से हुआ, हिंदू-मुसलमान दोनों तरफ़ की निचली जातियां अगर सक्रिय होतीं तो शायद यह बंटवारा नहीं होता। बल्कि लोहिया अपने निजी अनुभवों से बताते चलते हैं कि उस समय किस तरह मुसलिम विरोधी झूठी ख़बरों को बढ़ावा दिया जा रहा था। 

मसलन एक मुसलिम मोहल्ले में 303 बोर की एक बंदूक मिली, जिसे गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में 303 बंदूकों में बदल दिया गया। इसकी शिकायत उन्होंने गांधी जी से की। जाहिर है, इस चूक के पीछे कोई पूर्वग्रह भी रहा हो तो हैरानी की बात नहीं।

तो मूल बात यह है कि जिस सामाजिक-सांप्रदायिक घृणा की ज़मीन पर 1947 का बंटवारा हुआ था, उसे फिर से मज़बूत किया जा रहा है। जो मज़बूत करने वाली ताक़तें हैं वे फिर से ‘फ़ेक न्यूज़’ की भी मदद ले रही हैं। वही ताकतें इन दिनों सत्ता में हैं।
सड़क पर भाषण देते हुए “गोली मारो...को” जैसी भाषा बोलने वाले मंत्री बनाए जा रहे हैं। इनके बीच विभाजन की विभीषिका का दिवस मनाने की घोषणा होती है तो इससे यह आश्वस्ति कम मिलती है कि यह विभाजन की त्रासदी को समझ कर दुबारा वैसी भूल न करने की कोशिश है, और यह अंदेशा ज़्यादा होता है कि यह विभाजन के गुनहगारों की नए सिरे से पहचान के नाम पर एक बड़े तबके को फिर से अजनबी और अकेला बनाने का खेल न हो।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
प्रियदर्शन
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें