पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने भाजपा की उम्मीदों और भरोसे को पंख लगा दिए हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन राज्यों की हैट्रिक जीत को 2024 में भाजपा की लोकसभा चुनावों में जीत की हैट्रिक की गारंटी बताया है। इन नतीजों से भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए के भीतर पहले से ही मौजूद भाजपा और मजबूत होगी और सहयोगियों के साथ सीट बँटवारे में उठ सकने वाले असंतोष के स्वर न सिर्फ खामोश होंगे बल्कि सहयोगी भाजपा की इच्छानुसार सीट बँटवारे के हर फार्मूले को सिर झुकाकर स्वीकार करेंगे। बिहार की हाजीपुर सीट के लिए न चिराग पासवान बाल हठ कर सकेंगे और न ही उनके चाचा पशुपति पारस ही हाजीपुर न मिलने पर एनडीए से बाहर जाने की सोच सकेंगे। जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा भी प्रसाद में जो मिलेगा उस पर ही खुश रहेंगे। कुछ इसी तरह उत्तर प्रदेश में अनुप्रिया पटेल का अपना दल और ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा सीट बंटवारे को लेकर आंखें नहीं तरेर सकेंगे। महाराष्ट्र में भी भाजपा ही तय करेगी कि लोकसभा की 48 सीटों में सहयोगी दलों शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजीत पवार) कितनी और कौन सी सीटों पर लड़ेंगे।
विधानसभा चुनाव - क्षत्रपों के अहंकार ने डुबोया कांग्रेस को!
- विश्लेषण
- |
- |
- 6 Dec, 2023

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनावों में कांग्रेस के ख़राब प्रदर्शन की बड़ी वजहें क्या हैं? जानिए, पार्टी से कहाँ चूक हुई।
इस लिहाज से लोकसभा चुनावों की पूर्व संध्या पर आए विधानसभा चुनावों के इन नतीजों से न सिर्फ भाजपा का दबदबा बढ़ गया है बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कद पार्टी के भीतर और बाहर और बड़ा हो गया है। अब भाजपा नेतृत्व आसानी से मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान में वसुंधरा राजे और छत्तीगगढ़ में रमन सिंह के विकल्प के तौर पर पार्टी में नया नेतृत्व तैयार कर सकता है, क्योंकि ये चुनाव इन छत्रपों के नाम पर नहीं बल्कि पार्टी के निशान कमल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी पर जीते गए हैं। भाजपा की अंदरूनी राजनीति में यह एक निर्णायक मोड़ है जब अटल आडवाणी युग के क्षेत्रीय छत्रपों की जगह पार्टी उत्तर भारत के इन तीन प्रमुख राज्यों में नया नेतृत्व विकसित करेगी। हालाँकि इन तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की भीड़ की वजह से यह एक चुनौती भी है लेकिन भाजपा का मौजूदा नेतृत्व इन चुनौतियों से बखूबी निबटना जानता है।