अगर देश में देशद्रोह का क़ानून होता तो गद्दारों को सज़ा देने-दिलाने में मशक्कत करनी नहीं पड़ती। कभी देश के केंद्रीय मंत्री को यह बोलना नहीं पड़ता- ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो... को।’ राजद्रोह क़ानून से हम देशद्रोह के मामले नहीं निपटा सकते। राजद्रोह और देशद्रोह अलग-अलग हैं और इन्हें मिलाकर देखने-समझने की भूल को हमें रोकना भी होगा।