उर्दू का एक शेर है ‘ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर, या वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो’ यानी पीने वाले नहीं चाहते कि उनपर कोई बंदिशें लगें। दिल्ली में पिछले साल नई एक्साइज पॉलिसी लागू करते हुए शायद पिलाने वालों ने अपने ऊपर कोई बंदिशें नहीं रखीं। जी हां, पिलाने वाले मतलब दिल्ली सरकार।
यकीनन, इस शराब नीति को लागू करते हुए आप सरकार ने जिस तरह कोई बंदिश नहीं मानी, उसी का यह नतीजा है। इसके साथ ही आशंका यह भी है कि दिल्ली सरकार के उपमुख्यमंत्री और केजरीवाल के खासमखास मनीष सिसोदिया को जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है। उनके एक मंत्री सत्येंद्र जैन को दो महीने से जमानत नहीं मिल पा रही। इसके बाद दिल्ली सरकार के सारे 18 प्रमुख विभाग सिसोदिया संभाल रहे थे-चाहे वह शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, पीडब्ल्यूडी हो, बिजली हो या फिर शहरी विकास हो। अगर सिसोदिया भी जेल गए तो फिर उनकी सरकार कैसे चलेगी, जनता में क्या मैसेज जाएगा और पूरे देश में आप के विस्तार पर कितना असर पड़ेगा, यह सवाल भी मुंह बाएं खड़े हैं।
बीजेपी एक्साइज पॉलिसी को लेकर शुरू से ही बहुत हमलावर थी। बीजेपी के हाथ जैसे अचानक ही बटेर लग गई थी। पिछले दो सालों से नगर निगम को लेकर आम आदमी पार्टी बीजेपी पर लगातार आक्रमण कर रही है और बीजेपी को डिफेंसिव खेलने के अलावा कुछ नहीं सूझ रहा था। एक्साइज पॉलिसी आने के बाद बीजेपी ने आप सरकार पर यह आरोप लगाना शुरू किया कि वह गली-गली शराब पहुंचा रही है। सचमुच, ऐसा लग भी रहा था। हालांकि आप सरकार ने ऐलान किया था कि दिल्ली में एक भी नया ठेका नहीं खुलेगा लेकिन असल में ऐसा नहीं था।
दिल्ली में 849 ठेके स्वीकृत थे लेकिन इतने ठेके दिल्ली में कभी नहीं खुले। 16 नवंबर 2021 को जब दिल्ली में नई एक्साइज पॉलिसी लागू हुई, उससे पहले भी दिल्ली में 550 ठेके ही थे जिनमें से करीब 250 ठेके सरकारी थे और बाकी प्राइवेट। इस तरह नई पॉलिसी से दिल्ली में करीब 300 ठेके प्रभावी रूप से बढ़ने वाले थे। नई एक्साइज पॉलिसी के तहत दिल्ली में 639 प्राइवेट दुकानें खुल भी गई लेकिन पहली अगस्त 2022 तक आते-आते इन ठेकों की संख्या सिर्फ 339 रह गई है।
शराब की दुकानें अलॉट करते हुए यह नीति बनाई गई कि हर निगम वार्ड में तीन ठेके खोले जाएंगे और इसका तर्क यह दिया गया कि दिल्ली के हर कोने में शराब मुहैया कराई जा सकेगी जिससे अवैध शराब का धंधा खत्म हो जाएगा। ये ठेके ऐसी जगह पर भी दिए गए जो रिहायशी इलाके थे। यहां तक कि स्कूल-कॉलेज, अस्पताल, मंदिर या अन्य धार्मिक स्थलों के आसपास भी शराब की दुकानें खोलने की अनुमति दे दी गई। कई जगह पर विरोध प्रदर्शन हुए, बहुत-से लोग अदालतों में गए और स्थगनादेश ले आए। मगर, सबसे ज्यादा नुकसान इस बात का हुआ कि नॉन कनफर्मिंग इलाकों यानी अवैध बस्तियों या ऐसी सड़कों पर भी शराब की दुकानों की इजाजत दी गई जो कमर्शियल नहीं थी। मास्टर प्लान-2021 भी इसकी अनुमति नहीं देता था। इसका परिणाम यह निकला कि नगर निगम में बैठी बीजेपी को एक बड़ा मौका मिल गया और उसने नॉन-कनफर्मिंग इलाकों में शराब की सारी दुकानें बंद करा दीं।
दिल्ली सरकार ने ऐलान किया था कि नई एक्साइज पॉलिसी से उसे हर साल 9000 करोड़ रुपए की आमदनी होगी जबकि पहले करीब 6000 करोड़ की ही होती थी। केजरीवाल सरकार ने बजट में अनुमान लगाया था कि वर्ष 22-23 की पहली तिमाही में नई शराब नीति से सरकार को 2375 करोड़ रुपए का रेवेन्यू आएगा लेकिन इस दौरान सिर्फ 1485 करोड़ रुपए ही रेवेन्यू के रूप में प्राप्त हुए। इसमें से भी शराब ठेकेदारों ने सिक्योरिटी के रूप में 980 करोड़ रुपए जमा कराए थे जोकि रिफंडेबल हैं यानी वापस किए जाने हैं। इस तरह सरकार को सिर्फ 505 करोड़ का रेवेन्यू ही प्राप्त हुआ है। असल में वसूली 505 करोड़ रुपए की हुई। इस तरह सरकार को 1870 करोड़ रुपए का रेवेन्यू कम हासिल हुआ।
सरकार के अपने कैबिनेट नोट के अनुसार इस साल की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून तक व्हिस्की की सेल में 59.46 फीसदी और वाइन में 87.25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अब किसी को यह समझ नहीं आ रहा कि जब शराब की बिक्री ज्यादा हुई तो फिर सरकार को रेवेन्यू क्यों नहीं मिला। इस बिक्री की 2019-20 की तुलना की गई है। हालांकि सरकार का कहना है कि बीजेपी ने शराब विक्रेताओं को ईडी और इंकम टैक्स का डर दिखाया है और मास्टर प्लान का वास्ता देकर दुकानें बंद कराई हैं जिससे रेवेन्यू कम हो गया लेकिन सच्चाई यह है कि दिल्ली सरकार का खजाना में नई एक्साइज पॉलिसी आने के बाद खाली हुआ है।
अब सवाल यह उठता है कि नई एक्साइज पॉलिसी में घपला क्या हुआ है और आखिर यह घपला प्रकाश में कैसे आ गया जबकि आम आदमी पार्टी अभी भी कह रही है कि कोई घपला नहीं है और मनीष सिसोदिया एकदम पाक-साफ हैं। वैसे तो केजरीवाल अपने सारे मंत्रियों की ईमानदारी की कसमें खाते हैं।
दरअसल एक्साइज पॉलिसी में फंसने का न्यौता आम आदमी पार्टी ने खुद ही बीजेपी को दे दिया। इससे पहले उपराज्यपाल अनिल बैजल के साथ केजरीवाल सरकार के संबंध बहुत ही ‘मधुर’ हो चले थे लेकिन नए उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के आने के बाद हालात बदल गए। नगर निगम चुनाव स्थगित होने के बाद आप सरकार के पास नए राज्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का मौका आया तो केजरीवाल के चहेते मुख्य सचिव विजय देव ने वीआरएस लेकर नया चुनाव आयुक्त बनना स्वीकार कर लिया। यह केजरीवाल को रास आ रहा था क्योंकि नगर निगम चुनाव कभी भी हो सकते हैं लेकिन वह भूल गए कि नए उपराज्यपाल के साथ जब नए मुख्य सचिव भी आ जाएंगे तो फिर अफसरशाही को काबू में रख पाना आसान नहीं होगा। यहीं उन्होंने गलती कर दी। अब नए सचिव नरेश कुमार ने ही नई एक्साइज पॉलिसी को लेकर जो रिपोर्ट दी, उसी के कारण उपराज्यपाल ने सीबीआई से जांच की सिफारिश कर दी। इसी से सिसोदिया फंसते नजर आ रहे हैं।
यह सच है कि इन आरोपों में मनीष सिसोदिया पर रिश्वत लेने या फिर पैसा कमाने का कोई आरोप नहीं लगा है लेकिन जिस तरह के आरोप हैं, उन्हें देखते हुए दो और दो चार करना मुश्किल भी नहीं होगा। बड़ी बात यह है कि एक्साइज अफसरों ने कहीं भी अपनी जिम्मेदारी लेते हुए कोई नियम नहीं तोड़ा बल्कि फाइल पर यही नोटिंग हुई कि उपमुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया के आदेश पर ऐसा किया जा रहा है। मसलन, एयरपोर्ट जोन में शराब के ठेके देने के लिए सबसे कम रेट देने वाले ठेकेदार को 30 करोड़ की धरोहर राशि वापस कर दी गई। दरअसल उसके लिए यह जरूरी था कि वह एयरपोर्ट अथॉरिटी से एनओसी लाता। वह नहीं ला पाया तो शर्तों के हिसाब से उसकी धरोहर राशि जब्त होनी चाहिए थी लेकिन वह वापस कर दी गई।
सिसोदिया ने अपनी मर्जी से इम्पोर्ट पास फीस में 50 रुपए प्रति केस की कमी कर दी और इसके लिए कहीं से अनुमति नहीं ली। लाइसेंस फीस देने में देरी करने वालों पर कोई जुर्माना या ब्याज लेने की बजाय उन्हें कोविड के नाम पर 144 करोड़ रुपए से ज्यादा की छूट दे दी गई। जब नॉन कनफर्मिंग इलाकों में दुकानें बंद होने लगीं तो अपनी मर्जी से दूसरे इलाकों में दुकानें खोलने की अनुमति दे दी। शराब बेचने के लिए दुकानदारों ने एक के साथ एक फ्री का प्रचार किया और सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। ब्लैक लिस्टेड ठेकेदारों को भी ठेके अलॉट कर दिए गए। वैसे तो नई शराब नीति के तहत 3 बजे तक दुकानें खोलने के लिए पुलिस से बात न करने और ड्राई डे 21 की बजाय सिर्फ 3 करने का फैसला भी किसी के गले नहीं उतरा लेकिन उसे किसी जांच की श्रेणी में नहीं लाया जा सकता।
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