वर्ष 2019 में जहाँ भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने तमाम ऐतिहासिक फ़ैसले सुनाए वहीं कुछ ऐसी न्यायिक निष्क्रियता भी दिखी जिसने न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठाये। इन सबसे पहले देश की सबसे बड़ी अदालत के चार सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों ने जनवरी 2018 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए कहा था कि देश न्यायिक संकट से जूझ रहा है।
ऐतिहासिक फ़ैसले तो आए, पर आम लोगों के साथ न्याय हुआ?
- विचार
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- 31 Dec, 2019

वर्ष 2019 में जहाँ भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने तमाम ऐतिहासिक फ़ैसले सुनाए वहीं कुछ ऐसी न्यायिक निष्क्रियता भी दिखी जिसने न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठाये।
हाल में जब नागरिकता संशोधन अधिनियम के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे जामिया मिल्लिया इसलामिया के परिसर में पुलिस की बर्बरता के साथ ही पूरे देश में छात्रों के साथ दमनात्मक कार्रवाई के ख़िलाफ़ याचिका लेकर लोग सुप्रीम कोर्ट पहुँचे तब वहाँ जो सुनने को मिला वह बेहद चौंकाने वाला रहा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह न्यायिक व्यवस्था का अंग नहीं है, इसे क़ानून-व्यवस्था अपने हिसाब से देखेगी। अदालत ने यह भी कहा कि जब तक प्रदर्शन बंद नहीं होता, वह इससे जुड़ी किसी भी याचिका को नहीं सुनेगी!
वर्ष 2019 के कुछ उदाहरण जब न्यायपालिका ने लोगों को निराश किया।