फ़ैज़ को बख़्श दें। साहित्य, संगीत, अदब को नफ़रत और घृणा से बाहर रखें। फै़ज़ अहमद फ़ैज़ अदब की दुनिया में शायरी के ज़रिए क्रांति का प्रतीक हैं। फै़ज़ की क़लम जब भी चली, मजलूमों के लिए चली। गुरबत में रहने वालों के लिए चली। तानाशाही के ख़िलाफ़ चली। लोकतंत्र के लिए चली। उनकी क़लम सदा ही कविता की दुनिया में इंक़लाब के रंग भरती चली।