सरदार पटेल ने 21 अप्रैल 1947 को दिल्ली के मैटकाफ़ हाउस में अखिल भारतीय सिविल सेवा का उद्घाटन करते हुए इसे ‘स्टील फ़्रेम ऑफ़ इंडिया’ कहा था। यानी सिविल सेवा से एक ऐसे इस्पाती ढाँचे के रूप में काम करने की अपेक्षा की गयी थी जिसकी एकमात्र प्रतिबद्धता संविधान और क़ानून का शासन हो। इसके लिए जाति या धर्म की संकीर्णताओं से मुक्त रहना लाज़िमी था। सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को राजनीति से दूर रहना था ताकि सरकारों के आने-जाने से इस ढाँचे पर कोई फ़र्क़ न पड़े।
सरदार पटेल से विश्वासघात है सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस में जाने की छूट!
- विचार
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- 22 Jul, 2024

हक़ीक़त यह है कि राजनीति से दूर रहने के सरदार पटेल से किये गये वादे को आरएसएस ने कभी नहीं निभाया। 1951 में जनसंघ का गठन हो या फिर 1980 में भारतीय जनता पार्टी का, दोनों पार्टियाँ आरएसएस की योजना के तहत अस्तित्व में आईं।
देश में जारी तमाम उथल-पुथल के बीच 1966 में सरकारी कर्मचारियों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जमाते इस्लामी की गतिविधियों में शामिल होने पर रोक लगायी गयी थी। डिप्टी सेक्रेटरी आर.एम.श्रॉफ़ के हस्ताक्षर से जारी ऑफिस मेमोरेंडम में कहा गया था कि इन दोनों संगठनों की गतिविधियों में भाग लेने से सिविल सेवा आचरण नियमावली, 1964 के नियम-पाँच का उल्लंघन होता है जो राजनीति में भागीदारी करने से सरकारी कर्मचारियों को रोकता है।