कोई मीडिया प्रतिष्ठान चीन के साथ सीमा पर वर्तमान में चल रहे तनावपूर्ण सम्बन्धों के दौरान अगर ऐसी ख़बर चला दे कि सैनिकों के बीच सेनाध्यक्ष के निर्णयों के प्रति (कथित तौर पर) ‘विद्रोह’ पनप रहा है तो रक्षा मंत्रालय और सरकार को क्या करना चाहिए? भारतीय सेना के मनोबल को कमज़ोर करने वाली इस तरह की ख़बर के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई की जानी चाहिए या नहीं? अगर की जानी चाहिए तो उसमें आरोपी किसको बनाया जाना चाहिए?
अर्णब की लड़ाई मीडिया की आज़ादी की लड़ाई नहीं है!
- विचार
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- 27 Oct, 2020

अर्णब के चैनल ने मुंबई की प्रतिष्ठित पुलिस को बिना किसी स्पष्ट प्रमाण के पुलिस कमिश्नर के ख़िलाफ़ ‘विद्रोह’ में खड़ा कर दिया है। इस सवाल का जवाब कि बाक़ी मीडियाकर्मियों को क्या करना चाहिए? यही हो सकता है कि बोलने और लिखने की आज़ादी के ख़िलाफ़ पुलिस या सरकार के किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन अर्णब गोस्वामी के मामले में क्या ऐसा करना चाहिए?
फ़र्ज़ी तरीक़े से अपने चैनल के लिए टीआरपी बटोरने के आरोपों से घिरे अर्णब गोस्वामी की अगुआई वाले रिपब्लिक टीवी ने हाल ही में एक सनसनीख़ेज़ ख़बर प्रसारित की थी कि पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के निर्णयों से मुंबई पुलिस के जवानों में ‘विद्रोह’ की स्थिति बन गई है।