इसमें अचम्भा कैसा कि वह लड़का पिट रहा था! लड़के की उम्र मुझे पन्द्रह से सोलह साल तक लगी थी। कपड़ों से ही ग़रीब नहीं, वह अपनी शक्ल सूरत से ही दीन-हीन लग रहा था। हाँ उसे किसी भी सामान्य इंसान की तरह प्यास लगी थी। प्यासा शायद वह बहुत देर से था और प्यास की उस सीमा तक आ चुका था, जहाँ आदमी का हलक सूखने लगता है। ऐसा न होता तो वह कहीं से भी पानी पीने की जुर्रत न करता। प्यास उसे कहीं भी देखने की मोहलत नहीं दे रही थी। बस नज़र ने खुद ब खुद पानी का स्त्रोत ढूँढ लिया।