इसमें अचम्भा कैसा कि वह लड़का पिट रहा था! लड़के की उम्र मुझे पन्द्रह से सोलह साल तक लगी थी। कपड़ों से ही ग़रीब नहीं, वह अपनी शक्ल सूरत से ही दीन-हीन लग रहा था। हाँ उसे किसी भी सामान्य इंसान की तरह प्यास लगी थी। प्यासा शायद वह बहुत देर से था और प्यास की उस सीमा तक आ चुका था, जहाँ आदमी का हलक सूखने लगता है। ऐसा न होता तो वह कहीं से भी पानी पीने की जुर्रत न करता। प्यास उसे कहीं भी देखने की मोहलत नहीं दे रही थी। बस नज़र ने खुद ब खुद पानी का स्त्रोत ढूँढ लिया।
वह लड़का दर्द से बेज़ार था
- विचार
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- 17 Mar, 2021

यह कैसा हत्यारा समय आया है कि आदमी मनुष्य से दरिन्दा बस इसलिये बन रहा है कि तेरा धर्म मेरा धर्म करते हुये अपना ही मनुष्य धर्म भूल रहा है और आज दो चुल्लू पानी की एवज़ आदमी की जान लेने पर उतारू है। यह किस मज़हब में लिखा है कि पानी भी हिन्दू और मुसलिम होता है!
फिर क्या था, वह पागलों की तरह पानी की ओर भागा। मेरे ख़्याल में उसे पानी के अलावा कुछ और दिखाई भी नहीं दे रहा था। पानी उसे किसी नदी या तालाब में दिखा होता तो ख़ैरियत रहती। नदी तालाब अपने विस्तार के चलते बहुत उदार होते हैं। पानी उसे एक नल में दिखा। नल? नल था। उसकी निगाहों में वह नल ही अब पानी था। पानी की धारा उसके कंठ में जाती महसूस हुई। वह नल के नीचे अँजुरी लगाकर पानी पीने लगा। पेट भर पानी पिया तो जैसे ज़िन्दगी वापिस आई। तब उसने इधर उधर देखा। मगर वह नहीं देखा जो देखना चाहिये था। और देख भी लेता तो भी क्या अपनी प्यास पर उसका बस चलता?
पानी पीकर वह अपने रास्ते जाने लगा।
मैत्रेयी पुष्पा जानी-मानी हिंदी लेखिका हैं। उनके 10 उपन्यास और 7 कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें 'चाक'