वर्तमान के बुरे राजनीतिक दौर में ऊपरी तौर पर नज़र ऐसा ही आ रहा है कि जनता पूरी तरह से जड़ या स्थितप्रज्ञ हो गई है! उस पर किसी भी चीज अथवा बड़ी से बड़ी घटना का भी कोई असर नहीं पड़ रहा है। वह ऐसा जता रही है कि नीतीश कुमार द्वारा विपक्षी गठबंधन को लतिया कर प्रधानमंत्री मोदी के साथ पुनः हाथ मिला लेने अथवा प्रतिष्ठित ‘लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स’ के स्नातक (चौधरी चरणसिंह के पोते) जयंत चौधरी द्वारा अखिलेश यादव की पार्टी के साथ धोखाधड़ी कर एनडीए के साथ जुड़ जाने की कार्रवाई से भी उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा है! यह संपूर्ण सत्य नहीं है।