वर्तमान के बुरे राजनीतिक दौर में ऊपरी तौर पर नज़र ऐसा ही आ रहा है कि जनता पूरी तरह से जड़ या स्थितप्रज्ञ हो गई है! उस पर किसी भी चीज अथवा बड़ी से बड़ी घटना का भी कोई असर नहीं पड़ रहा है। वह ऐसा जता रही है कि नीतीश कुमार द्वारा विपक्षी गठबंधन को लतिया कर प्रधानमंत्री मोदी के साथ पुनः हाथ मिला लेने अथवा प्रतिष्ठित ‘लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स’ के स्नातक (चौधरी चरणसिंह के पोते) जयंत चौधरी द्वारा अखिलेश यादव की पार्टी के साथ धोखाधड़ी कर एनडीए के साथ जुड़ जाने की कार्रवाई से भी उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा है! यह संपूर्ण सत्य नहीं है।
विपक्ष नहीं, जनता की एकता से डरना चाहिए भाजपा को!
- विचार
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- 12 Feb, 2024

क्या नीतीश कुमार के जेडीयू और जयंत चौधरी के आरएलडी के एनडीए में शामिल हो जाने से विपक्ष कमजोर हो गया है? लेकिन उस जनता का क्या जो एकजुट है?
जनता सब कुछ देख रही है पर जान-बूझकर न तो रो रही है और न ही हँस रही है। वह सन्नाटा ओढ़कर दल-बदलुओं का मुजरा देखते हुए अपनी बारी का इंतज़ार कर रही है। दबी ज़ुबान से पूछने अवश्य लगी है कि चुनावों के पहले और कितनों को ‘भारत रत्न’ बनाया जाएगा! सरकार की मदद के लिए कई नाम भी सुझाए जा रहे हैं। जैसे कांशीराम, बीजू पटनायक, राजशेखर रेड्डी, करुणानिधि, बाल ठाकरे, शरद पवार, आदि। ममता और केजरीवाल के पुरखों में भी किसी योग्य नाम की तलाश की जा रही है। ममता के बाद केजरीवाल ने भी पंजाब और दिल्ली में अकेले ही चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है।