दिसंबर, 2012 में हुए सनसनीखेज निर्भया कांड के बाद देश में जनता के आक्रोष को देखते हुए सरकार ने बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के अपराध के लिए कठोर सज़ा का प्रावधान करने के साथ ही इस अपराध के मुक़दमों के लिए विशेष अदालतें गठित करने का निर्णय लिया था। लेकिन इसे मूर्तरूप लेने में वक़्त लग रहा है। क़ानून में यह व्यवस्था की गयी कि इन त्वरित विशेष अदालतों की अध्यक्षता यथासंभव महिला न्यायाधीश करेंगी।
निर्भया से चिन्मयानंद तक: फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट, महिला जजों पर देरी क्यों?
- विचार
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- 24 Sep, 2019

दिसंबर, 2012 में हुए सनसनीखेज निर्भया कांड के बाद कठोर सज़ा के लिए कई निर्णय लिए गए थे। न तो त्वरित अदालतें गठित हुईं न महिला जजों को ऐसे केस सौंपे गए। निर्णय पर कितना हुआ पालन?
हालाँकि, दिल्ली की अदालत में स्थानांतरित किए गए उन्नाव के सामूहिक बलात्कार कांड की शिकार युवती के मुक़दमे की सुनवाई कर रही विशेष अदालत की अध्यक्षता महिला न्यायाधीश नहीं कर रही हैं, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि बीजेपी नेता स्वामी चिन्मयानंद के मुक़दमे की सुनवाई करने वाली विशेष अदालत की अध्यक्षता की ज़िम्मेदारी महिला न्यायाधीश को सौंपी जाएगी।
महिलाओं के सम्मान और गरिमा की रक्षा करने के प्रति सरकार की गंभीरता का अंदाज़ा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि छह साल पहले 2013 में क़ानून में कठोर प्रावधान के बाद अब इस साल दो अक्टूबर से 1023 विशेष त्वरित अदालतें स्थापित करने का काम शुरू होगा।