सरकार और किसान नेताओं के बीच अब जो बातचीत होने वाली है, मुझे लगता है कि यह आख़िरी बातचीत होगी। या तो सारा मामला हल हो जाएगा या फिर यह दोनों तरफ़ से तूल पकड़ेगा। धरना देनेवाले पंजाब और हरियाणा के किसान काफ़ी दमदार, मालदार और समझदार हैं और सरकार भी अपनी ओर से किसानों का ग़ुस्सा मोल नहीं ले सकती है। 60-70 करोड़ लोगों को कुपित करनेवाली सरकार को दो-चार अडानी-अंबानी नहीं बचा सकते। सरकार उनसे नोट तो ले सकती है लेकिन वे इसे वोट कहाँ से लाकर देंगे? इसीलिए 30 दिसंबर की इस वार्ता को सफल होना ही चाहिए। इस संबंध में मेरे कुछ सुझाव हैं। दोनों पक्ष उन पर विचार कर सकते हैं।