‘लोकतंत्र’ इस शब्द को बोलते हुये ही नहीं, इस को जीने की तमन्ना की थी तब जब हमारी पीढ़ी जन्म ले रही थी और हमारे माता-पिता की पीढ़ी अंग्रेजों के शासन की मार से विकल किसी तरह राहत की आशा में हाथ पाँव मार रही थी। आदमी के मरने से पहले आशा नहीं मरती और जब तक आशा नहीं मरती संघर्ष घुटने नहीं टेकता क्योंकि जीवित अवस्था में साहस जितना होता है संघर्ष उतना ही सघन होता जाता है।
मैं कहना यह चाहती हूँ कि गोरों की राजनीति और शासननीति के आमने सामने हम भारतीयों का संघर्ष कई कई रूपों में प्रकट हुआ। उनमें से जो रूप मुख्य था वह आन्दोलन था, सत्याग्रह था, अनशन था और उपवास था। सेना लेकर मार काट की लड़ाई नहीं थी। यह शासक का सामना करने और चुनौती देने का नया रूप था। लेकिन शासक तो शासक होता है, यह जो शान्तिपूर्वक संघर्ष का रास्ता था, अंग्रेजों को बहुत बेचैन करने लगा, इसको फ़तह कैसे किया जाये? साहब बहादुरों के सलाहकारों में बेचैनी बढ़ने लगी, अंग्रेज़ी निज़ाम में खलबली मच गयी।























_bill_2025.png&w=3840&q=75)



