एक स्टैंड अप कॉमेडियन वीर दास ने जो कुछ कहा, उस पर इस तरह हायतोबा की जा रही है जैसे दो तरह के भारत का यथार्थ किसी को मालूम नहीं है। जबकि ये दो तरह के भारत लगभग साथ-साथ रहते हैं। जिस फ़्लाईओवर के ऊपर से एक भारत की चमकती गाड़ियाँ गुज़रती रहती हैं, उसी फ़्लाईओवर के नीचे फुटपाथ पर दूसरा भारत सोया रहता है। जिस इमारत में एक भारत तरह-तरह के सूटबूट, टी शर्ट या ऐसे ही स्मार्ट कपड़ों में साफ-सुथरी मेज़ पर कंप्यूटरों, लैपटॉप के बीच काम करता रहता है, उसी इमारत में दूसरा भारत उसे चाय पहुंचाने, उसके लिए वॉशरूम साफ़ करने, इमारत में लगातार पोछा मार कर उसे चमकाने में लगा रहता है। एक भारत बहुमंज़िला इमारतों या कई टावरों वाले अपार्टमेंट्स में बसता है और दूसरा यहां आकर बर्तन मांजता है, गाड़ियां धोता है, अख़बार बांटता है और इस्त्री करता है।
खेतों वाले भारत को कुर्सी वाले भारत में भरोसा नहीं!
- विचार
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- 21 Nov, 2021

वीर दास
प्रियदर्शन लिखते हैं- जिस दो तरह के भारत की हम चर्चा कर रहे हैं, उनमें कई तरह के भारत हैं। लेकिन हर जगह यही नज़र आता है कि अमीर भारत पहले ग़रीब भारत की जेब काटता है और फिर उसके लिए खाना बांटता है।
यह बात शायद मैंने कई बार लिखी है कि यूरोप की समृद्धि की वजह दो सौ साल का वह उपनिवेशवाद है जिसने उन्हें आर्थिक साधन भी दिए और सस्ता श्रम भी। उन्होंने जम कर अपने उपनिवेशों को लूटा। यूरोप की समृद्धि में एशिया, लातीन अमेरिका और अफ़्रीका का पसीना ही नहीं, ख़ून भी शामिल है।