5 अगस्त को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद कश्मीर में सब कुछ बदल गया है। अवाम लगभग बेरोज़गार होकर घरों में क़ैद होने को मजबूर हैं। घाटी के प्रमुख सियासतदान, जिनमें 3 पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व केंद्रीय मंत्री शामिल हैं, भी सरकारी क़ैद में हैं। इसके अतिरिक्त सैकड़ों लोग जम्मू कश्मीर के बंदीगृहों, स्थायी-अस्थायी जेलों के साथ-साथ देश की विभिन्न जेलों और जेल सरीखी अन्य जगहों में बंद हैं। इस बाबत सरकारी-ग़ैर सरकारी आंकड़े और दावे एकदम अलग-अलग हैं।
गणतंत्र दिवस के दिन भी पाबंदियों में जकड़ा हुआ था कश्मीर

गणतंत्र दिवस के दिन भी कश्मीर पाबंदियों में जकड़ा रहा। कश्मीर के लोगों का दर्द यह है कि उन्हें अपने भारतीय होने के कब तक और कितने सबूत देने होंगे।
आंकड़े अपनी जगह हैं लेकिन यह खुला सच है कि समूची घाटी अजीब किस्म की 'बंदी' में है। चौतरफा अंधेरा पसरा है और रोशनी का फिलवक्त कोई सुराग नहीं है। केंद्र की सरकारों को हमेशा लगता रहा है कि कश्मीर भारतीय गणतंत्र को चुनौती देता रहा है। इसलिए भी कि 1990 के बाद हर स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) और गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) को घाटी में हड़ताल रहती है। यह एक रिवायत बन चुकी है।