कोरोना टीकाकरण में 100 करोड़ खुराक लगाना बड़ी उपलब्धि तो है, लेकिन क्या इस उपलब्धि के आगे चुनौतियों पर नज़र है? क्या इसकी चिंता है कि टीकाकरण कम क्यों पड़ रहा है?
भारत बायोटेक की जिस कोवैक्सीन को डब्ल्यूएचओ ने वयस्कों के लिए अभी तक मंजूरी नहीं दी है उसके टीके को भारत में विशेषज्ञ पैनल ने 2 से 18 वर्ष की उम्र के बच्चों को भी लगाने की सिफ़ारिश क्यों की?
Satya Hindi News Bulletin। सत्य हिंदी समाचार बुलेटिन। ब्रिटेन : कोविशील्ड समस्या नहीं, भारत का वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट पर संदेह। बिहार: 'नल जल' में 53 करोड़ का ठेका डिप्टी सीएम के परिवार को!
ब्रिटेन के नये यात्रा नियमों में भारतीय वैक्सीन लगाए लोगों को टीकाकरण की मान्यता क्यों नहीं? जानिए, ब्रिटेन की यात्रा करने वाले लोगों को क्या आएगी परेशानी।
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान आलोचनाओं के बीच वैक्सीन निर्यात पर जो रोक लगाई गई थी उसे अगले महीने से हटा लिया जाएगा। आख़िर यह फ़ैसला क्यों लिया गया है? क्या प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका के दौरे को देखते हुए यह निर्णय लिया गया?
कोरोना संक्रमण से लड़ने वाली एंटीबॉडी यदि शरीर में ख़त्म भी हो जाए तो हमारे इम्युन सिस्टम में बी सेल और टी सेल ऐसे हैं जो कोरोना वायरस को याद रख लेते हैं। पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है।
देश की ड्रग्स नियामक संस्था ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया यानी डीसीजीआई ने ज़ायडल कैडिला की उस वैक्सीन को मंजूरी दी है जो वयस्क में तो लगाई ही जाएगी, 12 साल से ऊपर के बच्चों को भी लगाई जा सकेगी। इस वैक्सीन की तीन खुराक ज़रूरी होगी।
कोरोना वैक्सीन डेल्टा वैरिएंट के ख़िलाफ़ काफ़ी कम प्रभावी हैं। यह इंग्लैंड के एक शोध में सामने आया है। और भारत के आईसीएमआर के शोध में भी। ऐसे में टीके की दोनों खुराक लिए हुए लोगों को बूस्टर खुराक की ज़रूरत पड़ सकती है।
कोरोना संक्रमण हर्ड इम्युनिटी आने के बाद कम होने की उम्मीद थी लेकिन अब विशेषज्ञ कह रहे हैं कि बेहद तेज़ी से फैलने वाले कोरोना के डेल्टा वैरिएंट ने हर्ड इम्युनिटी की संभावना को धुमिल कर दिया है।
केरल में 40 हज़ार से ज़्यादा ऐसे लोग कोरोना संक्रमित पाए गए हैं जिन्हें पूरी तरह से टीके लग गए थे। क्या यह वायरस अब वैक्सीन से मिली सुरक्षा को मात देने में सक्षम है?
कोरोना के डेल्टा वैरिएंट से उन देशों के लोगों को ज़्यादा ख़तरा होगा जहाँ कोरोना के टीके कम लगाए गए हैं। आख़िर ये देश कौन हैं जहाँ टीके काफ़ी कम लगाए गए?
कोविड-19 के मुफ्त टीके के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रिया अदा करने वाले ऐसे होर्डिंग्स ने कोविड काल में भी प्रचार का कारोबार करने वालों की चांदी कर दी है।
लांसेट ने एक शोध प्रकाशित किया है जिसमें पता चला है कि फाइज़र और एस्ट्राज़ेनेका की वैक्सीन से बनी कोरोना के ख़िलाफ़ एंटीबॉडी यानी प्रतिरोधी क्षमता 2-3 महीने में ही धीरे-धीरे घटने लगती है।