जंतर मंतर पर एक और विरोध जारी है। यह न मज़दूरों का है, न किसानों का। न दलितों का, न मुसलमानों का। छात्रों का भी नहीं। ये सब समाज के वे तबके हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें आंदोलनों का व्यसन है या बीमारी है।अपना काम धाम छोड़कर सड़क पर बार बार आने के उनके कारण हैं। उनपर बात न करके उन्हें आदतन आंदोलनकारी कहकर उनके विरोध को बदनाम करने की कोशिश की जाती रही है।
किसी भी हिस्से के साथ नाइंसाफी, सबके साथ अन्याय है
- वक़्त-बेवक़्त
- |
- |
- 29 Mar, 2025

बीजेपी सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह
जंतर मंतर पर बैठी महिला पहलवानों का संघर्ष मामूली संघर्ष नहीं है। ये वो तबका है जो कभी सड़क पर निकलकर आंदोलन नहीं करता। इसलिए यह जरूरी है कि भारतीय समाज का हर तबका इस आंदोलन से जुड़े, इन्हें समर्थन दे। वो ऐसा क्यों करें, इसी बात को बता रहे हैं पत्रकार, लेखक और चिन्तक अपूर्वानंद अपने साप्ताहिक कालम में सिर्फ सत्य हिन्दी परः