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दुनिया ने कैसे यूक्रेन को अकेला छोड़ा, कमजोर देशों के लिये ख़तरनाक संदेश

रूस के हमले से जितना जख्मी यूक्रेन हुआ है उससे अधिक ज़ख्म उसे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की इस घोषणा से हुआ है कि नाटो की सेना यूक्रेन नहीं जाएगी। इसका मतलब साफ़ है कि यूक्रेन को रूस से अकेले ही लड़ना होगा। पहले ही दिन जिस तरीक़े से 203 हमले यूक्रेन ने झेले हैं उसे देखते हुए यह तय है कि रूस के सामने वह टिकने वाला नहीं है।

अमेरिका ने रूस को ख़ूब कोसा, निन्दा की और कई तरह के आर्थिक प्रतिबंधों की घोषणा की। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन को बुरे अंजाम भुगतने की चेतावनी भी दी। एक दिन बाद नाटो की बैठक में सख़्त प्रतिबंध और रूस की आर्थिक घेराबंदी जारी रखने का एलान भी जो बाइडेन ने किया। जी-7 देशों की ओर से आर्थिक प्रतिबंध कड़े करने के फ़ैसले की जानकारी जो बाइडेन ने दी। 

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अमेरिकी रुख से रुकेंगे रूसी क़दम?

सवाल ये है कि क्या रूस के आक्रामक तेवर को इन क़दमों से रोका जा सकता है? क्या रूस से यूक्रेन को कोई राहत मिल सकती है? जवाब है- क़तई नहीं। अमेरिकी राष्ट्रपति का यह कहना विधवा विलाप के अलावा कुछ भी नहीं है कि किसी भी देश पर जबरन कब्जा सही नहीं है। अफगानिस्तान, इराक जैसे देशों पर कब्जा और वहाँ कठपुतली शासन बनाने वाले अमेरिका की ये बातें रूस पर कोई प्रभाव क़तई नहीं डाल सकेंगी और न ही दुनिया इस अमेरिकी उपदेश को गंभीरता से लेने जा रही है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पूर्व के सहयोगी देशों में सेनाएँ तैनात रहने की घोषणा की है। उन्होंने कहा है कि हम सामूहिक रूप से रक्षा कवच तैयार कर रहे हैं। खास तौर से बेलारूस, एस्टोनिया, लिथुआनिया, रूमानिया का ज़िक्र बाइडन ने किया है। जर्मनी और पोलैंड की सेनाओं की भी चर्चा उन्होंने की।

पूर्वी यूरोपीय देशों पर भी ख़तरा बढ़ा

मगर, ऐसा कहकर वास्तव में अमेरिका ने रूस को उकसाने का ही काम किया है और पूर्वी यूरोपीय देशों के लिए ख़तरा बढ़ा दिया है। जो बाइडन के इस बयान से रूसी आक्रमण के हमले का आधार ही मज़बूत होता है। रूसी राष्ट्रपति कहते रहे हैं कि वह यूक्रेन को नाटो में नहीं देखना चाहते और न ही नाटो की सेना को यूक्रेन में। ऐसे में इस बात की पूरी आशंका है कि यूक्रेन के साथ-साथ रूस जल्द ही उन देशों पर भी हमले करेगा जहां नाटो की सेना तैनात है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह कहकर कि सहयोगी देश यूक्रेन की मदद करेंगे वास्तव में यह स्पष्ट कर दिया है कि अमेरिका की ओर से सैनिक मदद यूक्रेन को नहीं दी जा रही है।

नाटो की ओर से भी यूक्रेन को किसी सैन्य मदद मिलने की उम्मीद खत्म होती दिख रही है। वैसे इस बाबत नाटो की बैठक में ही फ़ैसला लिया जाएगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने जो अन्य अहम बातें कही हैं उस पर गौर करें-

  • यूक्रेन पर रूस का हमला अन्यायपूर्ण। पुतिन फिर से सोवियत संघ का गठन चाहते हैं। हम निन्दा करते हैं।
  • दुनिया रूस के खिलाफ। रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाने जा रहे हैं। 
  • रूस के बैंकों पर प्रतिबंध। रूस के 4 और बैंकों पर प्रतिबंध।
  • ग्रुप 7 भी प्रतिबंधों पर सहमत। 
  • पुतिन को नतीजे भुगतने होंगे।
  • रूस के भ्रष्टाचारी अरबपतियों पर प्रतिबंध। 
  • रूस पर सबसे बड़ी आर्थिक चोट करेंगे। 
  • नाटो का सम्मेलन कल, साथ मिलकर काम करने की कोशिश करेंगे। 
  • यूक्रेन में हमारी सेनाएं नहीं जाएगी। वहां लड़ाई नहीं लड़ेंगी। 
  • सहयोगी राष्ट्र यूक्रेन के साथ खड़ी रहेंगी। 

नाटो-रूस की बातचीत से विवाद हल करें- भारत

अमेरिकी राष्ट्रपति के संबोधन से पहले यूक्रेन ने रूस के सहयोगी रहे भारत से भी मदद मांगी थी। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन से 25 मिनट बातचीत की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि भारत चाहता है कि रूस और नाटो के बीच बातचीत से मसले का हल ढूंढा जाए। इसके अलावा पीएम मोदी ने यूक्रेन में फँसे भारतीय छात्रों के सकुशल निकालने के बारे में भी चर्चा की। जाहिर है कि भारत ने रूस-यूक्रेन विवाद में इधर या उधर होने के बजाए तटस्थता की राह चुनी है। मगर, जो बाइडन के भाषण के बाद ऐसा नहीं लगता कि निकट भविष्य में नाटो और रूस के बीच सौहार्दपूर्ण माहौल में कोई बातचीत होने जा रही है।

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आपदा में अवसर तलाश रहा चीन

आपदा में अवसर खोजते हुए चीन ने ताइवान को अपना अभिन्न हिस्सा बता दिया है। आशंका है कि वह ताइवान में सैन्य अभियान भी चला सकता है। वहीं, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने यूक्रेन में हमले के बीच रूस का दौरा पूरा कर लिया और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बैठक में जम्मू-कश्मीर का मसला उठाने से भी बाज नहीं आए।

अब यूक्रेन को यह बात समझ में आ गयी होगी कि संकट में ही मित्र की पहचान होती है और वास्तव में वह संकट की घड़ी में अकेला है। दुनिया के सारे देशों ने जो रुख दिखाया है वह उनके अपने-अपने हितों के हिसाब से है। 

नाटो के देश रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रहे हैं क्योंकि उन्हें यूक्रेन के बहाने ऐसा करने का अवसर मिला है। ऐसा करके वे रूस को दबाव में डालना चाहते हैं। बाकी देशों की प्रतिक्रियाएं भी यूक्रेन को कोई मदद करती नहीं दिखतीं।

अकेला पड़ा यूक्रेन

यूक्रेन ने नाटो की सेनाओं को ज़मीन मुहैया कराकर और रूस से तनाव को आगे बढ़ा कर जिस नीति का अनुसरण 2014 के बाद से किया है, उसने उसे कहीं का नहीं छोड़ा। रूस को अपनी सीमा के पास नाटो का सैन्य जमावड़ा बर्दाश्त नहीं है और न ही वह यूक्रेन में नाटो देशों के पूंजी निवेश को ही पचा पाया। अखण्ड रूस का हिस्सा रहने के बावजूद यूक्रेन इस बात को नहीं समझ सका कि रूसी इसे कभी बर्दाश्त नहीं कर सकेंगे।

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‘अखण्ड रूस’ से बढ़ी चिन्ता

रूस ने यूक्रेन पर हमले के बाद अखण्ड रूस यानी पूर्व सोवियत संघ की बात कहकर चिंता बढ़ा दी है। इसका मतलब यह होगा कि यूक्रेन तक ही नहीं थमने वाला है रूस। लिथुआनिया, लैटविया, एस्टोनिया जैसे देशों पर भी उसकी नज़र रहेगी और अगर पोलैंड, रोमानिया जैसे देशों में सैनिक जमावड़ा खत्म नहीं हुआ तो उसका जवाब देने से भी रूस नहीं चूकेगा।

लब्बोलुआब यह है कि रूस की आक्रामकता पर पूर्ण विराम खुद रूस ही लगाएगा। ऐसा कब होगा, यह वक्त ही बताएगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का मजाक उड़ाया है पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने। उन्होंने रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन की इस बात के लिए पीठ थपथपाई है कि उन्होंने यूक्रेन पर हमला बोला। ट्रंप और बाइडन के बयानों ने वास्तव में अमेरिका की ही खिल्ली उड़ाई है।

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प्रेम कुमार
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