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विदेशी सामान के बहिष्कार का चैंपियन रहा है चीन, भारत को नकल से फ़ायदा नहीं

भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव के साथ देश में स्वदेशी अभियान ने जोर पकड़ लिया है। शुरुआत में बीजेपी से जुड़े संगठनों, उद्योग संगठनों व सरकार समर्थकों ने चीन के सामान का सड़कों पर विरोध शुरू किया। उसके बाद भारत सरकार के मंत्री इस अभियान को गति देने में लगे हैं। 

विदेशी सामान के बहिष्कार का लंबा इतिहास रहा है। भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के समय विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का अभियान चला। हालांकि इतिहास से वर्तमान तक स्थिति देखें तो विदेशी सामान के बहिष्कार का चैंपियन हमारा पड़ोसी देश चीन रहा है और लोगों में राष्ट्रवाद जगाने के लिए वह समय समय पर आंदोलन चलाता रहा है।  

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बॉयकॉट का इतिहास

स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में जब 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल को बाँटने का फ़ैसला किया तो अंग्रेजी हुक़ूमत के ख़िलाफ़ स्वदेशी आंदोलन शुरू किया गया। इस आंदोलन में मैनचेस्टर के कपड़ों और लिवरपूल के नमक का बहिष्कार किया गया। बंगाल इसका बड़ा बाज़ार था। पूना और बॉम्बे में बाल गंगाधर तिलक, पंजाब में लाला लाजपत राय और अजीत सिंह, दिल्ली में सैयद हैदर रज़ा और मद्रास में चिदंबरम पिल्लई के नेतृत्व में आंदोलन चला। बाद में इसमें जातिवाद, बाल विवाह के विरोध को शामिल कर लिया गया।

अंग्रेजों की कॉलोनियों में वेंडरों, शिक्षण संस्थानों में अध्यापकों और न्यायालयों में वकीलों ने बहिष्कार किया। इसमें बड़े पैमाने पर आम लोगों ने हिस्सा लिया और दो साल तक चले आंदोलन में लोगों में राष्ट्रवाद पनपा। इससे लोगों में राजनीतिक जागरुकता आई।

गांधी का चरखा

महात्मा गांधी ने भी स्वदेशी आंदोलन का व्यापक तौर पर इस्तेमाल किया। उनका मानना था कि बड़ी संख्या में लोगों की ग़रीबी की वजह यह है कि लोग आर्थिक व औद्योगिक जीवन में स्वदेशी से हट गए हैं। गांधी के दौर में अपने घर में कपड़ा बुनने के लिए गाँव-गाँव चरखा पहुँच गया। गांधी ने प्रश्नोत्तर शैली में हिंद स्वराज नाम की एक पुस्तक भी लिखी थी, जिसमें स्वदेशी पर ज़ोर है।  

भारत की तरह ही चीन में ज़्यादा उग्र स्वदेशी आंदोलन चले हैं और समय समय पर चलते रहते हैं। 1880 के चीन के बहिष्कार आंदोलन के साथ देशभक्ति, उपनिवेशवाद का विरोध, आर्थिक प्रतिस्पर्धा जुड़ी हुई है।

चीन में बॉयकॉट आन्दोलन

1905 में अमेरिका के राष्ट्रपति थियोडोर रूज़वेल्ट सुधार लेकर आए, जिसके क़ानून से चीन का आव्रजन सीमित हो गया और इसके विरोध में चीन ने अमेरिकी कपास का बहिष्कार किया। चीन में 1930 के दशक में जापान के हमले के विरोध में जापानी उत्पादों का बहिष्कार किया।
1985 में हुए प्रदर्शनों में चीन में एक बार फिर जापान के सामान का बहिष्कार हुआ। उसके बाद 2003 में चीन में हाई स्पीड रेल लाइनें बनाने का ठेका जापान की फर्मों को दिए जाने को लेकर ऑनलाइन याचिका अभियान चलाया गया।
2005 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जापान के स्थायी सदस्य बनने की कवायदों के विरोध में व्यापक अभियान चलाया गया, जिसमें जापानी सामान के बहिष्कार के लिए ऑनलाइन अभियान चलाया गया। 2012 में उपभोक्ताओं की ओर से चलाए गए बहिष्कार अभियान को चीन की सरकार ने भी समर्थन दिया और इसे देशभक्ति की गतिविधि करार दिया।

दक्षिण कोरिया

दक्षिण कोरिया भी बड़े पैमाने पर चीन को सामान की आपूर्ति करता है। खासकर दक्षिण कोरिया से उच्च तकनीक के सामान और दवाओं की आपूर्ति होती है। कोरिया के सामानों का बहिष्कार भी चीन समय समय पर करता है।

फ्रांस

अन्य देशों में भी छोटे मोटे बहिष्कार आंदोलन चले हैं। 2003 में अमेरिका के नागरिकों ने फ्रांस के सामान के बहिष्कार का अभियान चलाया। अमेरिकी उपभोक्ता मंचों ने इराक के खिलाफ जंग में फ्रांस के साथ न देने के कारण फ्रांस के वाइन और चीज जैसे उत्पादों का विरोध किया।

फ़िलीस्तीन

फिलिस्तीन के साथ खड़े दिखने के लिए पश्चिम एशिया और अफ्रीका के 22 देशों के अरब लीग इज़राइल की कंपनियों व इज़राइल में बने सामानों का विरोध 1948 में इज़राइल की स्थापना के समय से ही करते आ रहे हैं। यह अभियान बहुत संगठित तरीके से तीन चरणों में चलाया जाता है।

स्वदेशी जागरण मंच का अभियान

भारत में आरएसएस से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठन लगातार स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल की हिमायत करते हैं, 1991 में स्थापित स्वदेशी जागरण मंच को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का आर्थिक विभाग कहा जाता है। यह संगठन समय समय पर बीजेपी सरकार के विरोध में भी अभियान चलाता रहा है।
चीन के साथ सीमा पर टकराव के बाद चीनी सामान के बहिष्कार के लिए कॉन्फेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने 450 से अधिक श्रेणियों के 3,000 से ज्यादा उत्पादों की सूची तैयार की, जो भारत में बनाए जाते हैं, जिन्हें सस्ता होने की वजह से चीन से मंगाया जाता है।
कैट ने टाटा, अंबानी, अज़ीम प्रेमजी, गोदरेज जैसे बड़े समूहों से स्वदेशी अभियान में साथ देने की अपील की। इसके अलावा चीनी ऐप डिलीट करने से लेकर चीनी झालर, खिलौने इस्तेमाल न करने को लेकर आम लोग आंदोलित हैं।

बिजली उद्योग में चीनी बॉयकॉट

अगर सरकार की बात करें तो चीन विवाद के बाद सबसे पहले बड़े नेताओं में उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने स्वदेशी की बात की। सरकारी खरीद पोर्टल पर यह बताना अनिवार्य किया गया है कि उत्पाद किस देश का बना है। बिजली मंत्रालय भी मेक इन इंडिया अपनाने की दौड़ में शामिल हुआ है, हालांकि यह मसला उसने राज्यों पर ठेल दिया है। भारत सरकार ने चीन के ऐप पर प्रतिबंध लगाने के साथ बिजली उपकरणों की बगैर पूर्व अनुमति आयात प्रतिबंधित कर दिया। बिजली मीटरों के ठेके रद्द कर दिए गए। स्मार्ट टीवी के आयात पर रोक लगा दी।

चीन से भारत मंगाए जाने वाले सामान की सूची बहुत लंबी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्त्वाकांक्षी सौर बिजली परियोजना पूरी तरह से चीन से आयात पर निर्भर है। सौर ऊर्जा उत्पादन में सोलर पैनलों का इस्तेमाल होता है और भारत की सौर बिजली परियोजनाओं के लिए क़रीब 78 प्रतिशत पैनलों का आयात चीन से होता है।

सौर ऊर्जा

भारत में सोलर पैनलों का आयात 2014-15 में 60 करोड़ डॉलर (क़रीब 4560 करोड़ रुपये) का था, जो 2017-18 में बढ़कर 342 करोड़ डॉलर (लगभग 25,992 करोड़ रुपये) हो गया। हालांकि इसके बाद आयात में थोड़ी गिरावट आई है।
इस तरह से मोदी की सौर उत्पादन की ड्रीम परियोजना ही चीन से आयात पर निर्भर है। भारत से नोकिया, सैमसंग गायब हो चुके हैं और सिर्फ 2019 में चीन से 1.4 लाख करोड़ रुपये के इलेक्ट्रॉनिक्स का आयात हुआ है, जिनमें स्मार्टफ़ोन, टेलीविज़न, स्मार्ट बैंड, स्मार्ट घड़ियाँ व लैपटॉप शामिल हैं।  

चीनी आयात

कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी देखें तो दवा एपीआई और इंटरमीडीएटरीज के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत, डीएपी फर्टिलाइजर में 45 प्रतिशत, इलेक्ट्रॉनिक्स में 38 प्रतिशत, ऑर्गेनिक केमिकल्स में 38 प्रतिशत है। इसी तरह मशीनरी और न्यूक्लियर रिएक्टर में 31 प्रतिशत, वाहनों के कल पुर्जों में 27 प्रतिशत, मोबाइल फोन के पुर्जों में 25 प्रतिशत चीन का हिस्सा है। इसके अलावा चीन की हिस्सेदारी प्लास्टिक में 18 प्रतिशत और यूरिया के कुल आयात में 13 प्रतिशत है।

चीनी निवेश

मोदी सरकार की महत्त्वाकांक्षी स्टार्टअप इंडिया योजना में भी चीन से मोटा निवेश आया है। बिग बॉस्केट में 25 करोड़ डॉलर (करीब 1,900 करोड़ रुपये), बैजू में 5 करोड़ डॉलर (380 करोड़ रुपये), देलहीवरी में 2.5 करोड़ डॉलर, ड्रीम 11 में 15 करोड़ डॉलर का निवेश हुआ। 
चीन ने फ्लिपकार्ट में 30 करोड़ डॉलर, हाइक में 15 करोड़ डॉलर, ओला में 50 करोड़ डॉलर, ओयो में 10 करोड़ डॉलर, पेटीएम मॉल में 15 करोड़ डॉलर का निवेश  किया। इसके अलावा पेटीएम डॉट कॉम में 40 करोड़ डॉलर, रिविगो में 2.5 करोड़ डॉलर, स्नैपडील में 70 करोड़ डॉलर, स्विगी में 50 करोड़ डॉलर, उड़ान में 10 करोड़ डॉलर, जोमैटो में 20 करोड़ डॉलर का निवेश आया है।
2018 और 2019 में चीन की कंपनियों ने ऊर्जा, रियल एस्टेट, बुनियादी ढाँचा, ऑटोमोबाइल, उपभोक्ता वस्तुओं सहित कई क्षेत्रों में करीब 10 अरब डॉलर (करीब 76,000 करोड़ रुपये) का निवेश किया है या निवेश की योजनाओं की घोषणा की है।

व्यापार घाटा

भारत और चीन के बीच कारोबार में भारत को मोटा कारोबारी घाटा होता है। भारत से चीन को 2014 में 16.41 अरब डॉलर, 2015 में 13.39 अरब डॉलर, 2016 में 11.75 अरब डॉलर, 2017 में 16.34 अरब डॉलर, 2018 में 18.83 अरब डॉलर, 2019 में जनवरी से नवंबर के बीच 16.32 अरब डॉलर का निर्यात हुआ।
वहीं चीन से 2014 में 54.24 अरब डॉलर, 2015 में 58.26 अरब डॉलर, 2016 में 59.43 अरब डॉलर, 2017 में 68.1 अरब डॉलर, 2018 में 76.87 अरब डॉलर और 2019 में जनवरी से नवंबर के बीच 68 अरब डॉलर का आयात हुआ है। 

चीन का कुल निर्यात 2.5 लाख करोड़ डॉलर है। इसमें भारत की हिस्सेदारी महज 3 प्रतिशत है। चीन के पास 3 लाख करोड़ डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार है।

घाटा किसे?

ऐसे में अगर हम चीन के सामान का बहिष्कार करते हैं या चीन का माल बेचने वाली दुकानों में आग लगा देते हैं तो इससे चीन को कम, भारत को ज़्यादा घाटा होने की संभावना है।
भारत को दूरगामी रणनीति बनाकर काम करना होगा, जिससे हम जिन वस्तुओं को भारत में बना सकते हैं, उनका उत्पादन प्रतिस्पर्धी करके और उनका दाम सस्ता करके आयात पर निर्भरता खत्म कर सकते हैं। हालांकि विदेशी सामान के बहिष्कार का इतिहास बताता है कि यह कारोबार पर कम असर डालता है, देशभक्ति जगाने में इसका इस्तेमाल ज्यादा होता रहा है।

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प्रीति सिंह
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