समझना थोड़ा मुश्किल हो रहा है कि राष्ट्र के नाम प्रधानमंत्री के चौथे सम्बोधन के बाद भी उम्मीदों की रोशनी किस तरह से ढूँढी जानी चाहिए? तीन सप्ताह के ‘लॉकडाउन’ को लगभग तीन सप्ताह (19 दिन) और बढ़ा दिया गया है। चालीस दिन और एक सौ तीस करोड़ लोग। जैसे कि एक चलता-फिरता राष्ट्र किसी जादूगर ने देखते-देखते सड़कों से ग़ायब कर दिया हो। बीस अप्रैल या तीन मई के बाद क्या होगा अभी कुछ भी साफ़ नहीं है। लोगों को सिर्फ़ इतना ही पता है कि उन्हें क्या करने को कहा गया है। यह काफ़ी चौंकाने वाला दिलासा हो सकता है कि अगर अमेरिका और यूरोप के देशों में ज़िंदगी और मौत को लेकर लड़ाई ऐसे ही चलती रहती है तब भी हम तो तीन मई के बाद कम्फ़र्ट ज़ोन में आ ही जाएँगे।