पिछले एक हफ़्ते से अचानक सरकार संविधान और क़ानून की बात करने लगी है। ख़ास तौर पर सूचना एवं तकनीकी मंत्री रविशंकर प्रसाद अपने ख़ास अंदाज़ में बारंबार कह रहे हैं कि विदेशी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को भारतीय संविधान एवं क़ानूनों का पालन करना ही पड़ेगा। यह बात उन्होंने संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह कही।
क़ानून की आड़ में ट्विटर पर एजेंडा चलाना चाहती है सरकार?
- विचार
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- 14 Feb, 2021

ऐसा लगता है कि ट्विटर ने भी समझौते की दिशा में क़दम बढ़ा दिया है। शुरू में लग रहा था कि वह सरकार के दबाव में नहीं आएगा। उसने सरकार के कई निर्देशों को मानने से इंकार भी कर दिया था। लेकिन ट्विटर ने अब सरकार से तालमेल रखने के लिए सीनियर अफ़सरों की नियुक्ति की घोषणा कर दी है, जो उसके नरम पड़ने का संकेत है।
रविशंकर प्रसाद के बयानों में एक ख़ास क़िस्म की बौखलाहट थी और धमकाने की मंशा भी। वह ट्विटर को उसके अधिकार और हदें नहीं बता रहे थे, न ही उनका इरादा भारतीय लोकतंत्र के तकाजे से उसे वाकिफ़ करवाना था। सीधे तौर पर कहा जाए तो वह उसे बता रहे थे कि अगर भारत में क़ारोबार करना है तो सरकार के आदेशों का पालन करना होगा।
इससे किसी को भला क्या असहमति हो सकती है कि भारत में क़ारोबार करने वाली हर देशी-विदेशी कंपनी को यहाँ के संविधान एवं क़ानूनों का सम्मान करना चाहिए, पालन करना चाहिए। भारत एक लोकतांत्रिक एवं संप्रभु देश है और सरकार का अधिकार ही नहीं ज़िम्मेदारी भी है कि वह इनकी पालना के लिए हर संभव उपाय करे।