मुसलिम महिलाओं को तीन तलाक़ से मुक्ति दिलाने और जम्मू-कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को समाप्त करने में मोदी सरकार को मिली सफलता के बाद एनडीए के घटक दलों ने देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने की माँग शुरू कर दी है। शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे द्वारा समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर ज़ोर दिए जाने के बाद पार्टी के मुखपत्र में इस बारे में प्रकाशित संपादकीय इस संभावना को बल प्रदान करता है। बीजेपी ख़ुद अर्से से इसकी माँग करती रही है। तो क्या अब समान नागरिक संहिता की बारी है?
तीन तलाक़ के बाद बीजेपी के निशाने पर अब समान नागरिक संहिता?
- विचार
- |
- |
- 21 Aug, 2019

एनडीए के घटक दलों ने समान नागरिक संहिता बनाने की माँग शुरू कर दी है। बीजेपी ख़ुद अर्से से इसकी माँग करती रही है। तो क्या अब समान नागरिक संहिता की बारी है?
लेकिन सवाल उठता है कि क्या देश में समान नागरिक संहिता लागू करना सहज है? शायद नहीं। संविधान के अनुच्छेद 44 में भले ही एक समान नागरिक संहिता प्राप्त करने का प्रयास करने की बात कही गयी है, लेकिन वास्तव में यह प्रावधान मृत प्राय है। इस तथ्य को देश की शीर्ष अदालत भी स्वीकार करती है और उसने 1985 के बहुचर्चित शाहबानो प्रकरण में अपने फ़ैसले में कुछ इसी तरह की राय भी व्यक्त की थी।