कर्नाटक की चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री आख़िरी कुछ दिन जिस तरह ‘जय बजरंग बली’ के नारे लगा कर अपने भाषण की शुरुआत करते थे, वह कई मायनों में अश्लील भी था और असंवैधानिक भी। बजरंग दल पर प्रतिबंध की कांग्रेस की घोषणा के बाद कर्नाटक में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बिल्कुल चरम पर ले जाने की यह कुत्सित कोशिश सीधे प्रधानमंत्री के स्तर पर हो रही थी, यह बात कुछ और डरावनी थी। प्रधानमंत्री यहां तक कहते रहे कि लोग वोट देने जाएं तो बजरंग बली का नारा लगाकर वोट दें। सिर्फ़ कल्पना की जा सकती है कि अगर किसी दूसरे राजनीतिक दल या नेता नेअपने चुनावी भाषणों की शुरुआत ‘अल्लाह हो अकबर’ के नारे से की होती और लोगों को वोट देने के बाद यह नारा लगाने को कहा होता तो बहुसंख्यक जमात की प्रतिक्रिया क्या होती। इसे लोकतंत्र और देश के लिए ख़तरनाक बताया जाता। मगर कर्नाटक में किसी अदालत, किसी चुनाव आयोग को प्रधानमंत्री के भाषण में कुछ भी आपत्तिजनक नज़र नहीं आया, किसी संवैधानिक भावना का, आचार संहिता के किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं दिखा। राहत की बात है कि कर्नाटक के लोगों ने प्रधानमंत्री का यह सुझाव ठुकरा दिया। बजरंग बली और बजरंग दल को एक करने की तजबीज उन्हें पसंद नहीं आई।
कर्नाटक ने कुत्सित सांप्रदायिकता और छद्म राष्ट्रवाद का दिया जवाब
- विचार
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- 29 Mar, 2025

कर्नाटक के चुनाव नतीजे उस दक्षिणपंथी राजनीतिक विचारधारा को भी जवाब है, जिसे कृत्रिम माहौल बनाकर देश पर जबरन थोपने की कोशिश की जा रही है। कर्नाटक के चुनाव नतीजों पर पढ़िए प्रियदर्शन का नजरियाः