सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार की उस याचिका को रद्द कर दिया है, जिसमें यह मांग की गई थी कि केंद्र सरकार उसे पिछड़ी जातियों के आंकड़े उपलब्ध कराए ताकि वह अपने स्थानीय चुनावों में महाराष्ट्र के पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण दे सके। केंद्र सरकार ने 2011 में जो व्यापक जन-गणना करवाई थी, उसमें नागरिकों की समााजिक-आर्थिक स्थिति पर भी आंकड़े इकट्ठे किए गए थे।
जातीय जनगणना: जाति के नाम पर वोटों की राजनीति
- विचार
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- 17 Dec, 2021

फ़ाइल फ़ोटो।
इस वक्त बिहार, उत्तर प्रदेश और दक्षिण के भी कुछ नेता जातीय जनगणना की मांग पर डटे हुए हैं। सच्चाई तो यह है कि हमारे राजनीतिक दल वैचारिक और व्यावहारिक दृष्टि से लगभग दीवालिया हो चुके हैं। इसीलिए वे जाति और मजहब के नाम पर थोक वोट कबाड़ने के लिए मजबूर हैं।
न्यायाधीशों ने उस याचिका को रद्द कर दिया और कहा कि खुद केंद्र सरकार ने उन आंकड़ों को इसीलिए प्रकाशित नहीं किया, क्योंकि ‘‘वे प्रामाणिक और विश्वसनीय नहीं’’ थे।
10 साल पहले की गई जातीय जनगणना से पता चला कि भारत में कुल 46 लाख अलग-अलग जातियां हैं। उनमें कौन अगड़ी है और कौन पिछड़ी, यह तय करना आसान नहीं है, क्योंकि एक प्रांत में जिन्हें अगड़ी माना जाता है, दूसरे प्रांत में उन्हें ही पिछड़ी माना जाता है। एक ही गोत्र कई अगड़ी और पिछड़ी जातियों में एक साथ पाया जाता है।