यूरोपीय संसद के 23 सदस्यों के जम्मू-कश्मीर दौरे पर सोशल मीडिया पर ज़बरदस्त प्रतिक्रिया हो रही है। ट्विटर पर #ये_कैसा_राष्ट्रवाद ट्रेंड कर रहा है, जिससे सैकड़ों लोग जुड़ गए हैं।
यह बात हैरान करने वाली है कि प्रधानमंत्री देश के किसी इलाक़े में जाने वाले हों और उससे पहले ही वहाँ के हजारों लोग उनसे वापस जाने के लिए कह दें तो इससे शर्मिंदगी होना तय है।
सोशल मीडिया ने लोगों को सशक्त बनाया है या शक्तिहीन? यह सवाल इसलिए कि सोशल मीडिया अब लोगों को गुमराह, प्रभावित और दिग्भ्रमित करने का एक कपटी हथियार बन गया है।
अमेरिका की फ़ेसबुक और चीन की टिक-टॉक के बीच जंग छिड़ी है। और मैदान बना है भारत। भारत में पहले से ही पैठ बनाई हुई फ़ेसबुक को अब टिक-टॉक ने कड़ी चुनौती दी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि उन्होंने 1988 में डिजिटल कैमरे से तसवीर खींची थी और उसे दिल्ली ई-मेल किया था। उनके इस बयान पर लोगों नें उन्हें जमकर ट्रोल किया।
क्या वोट के लिए मुफ़्त में सामान बाँटने जैसी पेशकश करना चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है? यदि नहीं है तो क्या इसे उल्लंघन के दायरे में नहीं होना चाहिए? यह सवाल एक ऐसे ही विज्ञापन के बाद उठ रहा है।