महिलाओं की पहचान थीम पर आधारित नाटक 'बेटियाँ मन्नू की' का मंचन किया गया। जानिए, समाज में महिलाओं की स्थिति और उनकी पहचान से जुड़े पहलुओं का कैसे मंचन किया गया।
क्या इतिहास को मिटाया जा सकता है, या झुठलाया जा सकता है? क्या ठीक इसे ठीक किया जा सकता है? पढ़िए "दी इंडियंस: हिस्ट्रीज़ ऑफ़ ए सिविलाइज़ेशन” पुस्तक की समीक्षा में।
'द अनबियरेबल लाइटनेस ऑफ बीइंग' के लेखक और प्रसिद्ध साहित्यकार मिलान कुंदेरा को दुनिया भर में किस रूप में जाना जाता है और अब उन्हें किस रूप में याद किया जाएगा?
गोरखपुर विश्वविद्यालय में ओमप्रकाश शर्मा, गुलशन नंदा या किसी अन्य लेखक को पढ़ाए जाने की बात से बेचैनी क्यों पैदा हो रही है? प्रेमचंद और निराला के साथ उनका ज़िक्र क्यों किया जा रहा है?
यह सच है कि हिंदी और उर्दू को सांप्रदायिक पहचान के आधार पर बांटने वाली दृष्टि बिल्कुल आज की नहीं है। उसका एक अतीत है और किसी न किसी तरह यह बात समाज के अवचेतन में अपनी जगह बनाती रही है कि हिंदी हिंदुओं की भाषा है और उर्दू मुसलमानों की।
साहित्य के लिए 2022 कैसा रहा? सुर्खियों में साहित्यकार गीतांजलिश्री रहीं तो सलमान रुश्दी भी रहे। कोरोना काल के बाद साहित्य की दुनिया में फिर से क्या उस तरह की हलचल हुई जैसी कोरोना से पहले हुआ करती थी?
भारत की वर्तमान राजनीति कैसी है और क्षेत्रीय दलों की विचारधारा और इसके प्रभाव क्या हैं? इस सवाल का जवाब एक किताब में समेटने की कोशिश की गई है। पढ़िए अकु श्रीवास्तव की किताब 'सेंसेक्स क्षेत्री दलों का' की समीक्षा।
क्या हिंदी साहित्य में विडंबनाओं को समाहित किया गया है? हिंदी लेखकों में विडंबना का कितना बोध है? हिंदी साहित्य में इन विडंबनाओं का कैसा इस्तेमाल हुआ है?