औपनिवेशिक भारत में आधुनिक शिक्षा की शुरुआत हुई। मानीखेज है कि ज्योतिबा फुले-सावित्रीबाई फुले जैसे बहुजन समाज सुधारकों के प्रयत्न से गरीब वंचित तबके को भी शिक्षा हासिल करने का मौका मिला। दलित, पिछड़े और महिलाओं के लिए फूले दंपत्ति ने शिक्षा का द्वार खोला। आजादी के आंदोलन के दरम्यान डॉ. अंबेडकर ने शिक्षा को वंचना से मुक्ति का सबसे सशक्त माध्यम बताया था।

केंद्रीय विश्वविद्यालयों में बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी के पद खाली हैं। आखिर केंद्र सरकार इन पर नियुक्तियां क्यों नहीं करती?
लेकिन सैकड़ों सालों से वंचित समाज के लिए शिक्षा प्राप्त करना इतना आसान नहीं था। चेतना और संपन्नता के अभाव में वंचित वर्ग के बहुत छोटे हिस्से तक ही शिक्षा पहुंच सकी।
आजादी के समय जब भारत की कुल साक्षरता दर केवल 12 प्रतिशत थी, तब अछूत समझे जाने वाले दलितों की साक्षरता दर का अनुमान किया जा सकता है। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उच्च शिक्षा पर अधिक जोर दिया। उन्होंने विश्वविद्यालय, आईआईटी, आईआईएम और एम्स जैसे बड़े संस्थान स्थापित किए।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।