खाने के तेलों के दाम इतने बढ़ गए हैं कि लोगों की पहुँच से बाहर होते जा रहे हैं। हालत यह है कि सरसों का तेल जो ग़रीबों का खाद्य तेल माना जाता है खुदरा बाज़ार में डेढ़ सौ रुपए लीटर से भी ज़्यादा का हो गया है।
वैसे तो पिछले लंबे समय से अर्थव्यवस्था के क्षेत्र से आ रही लगभग सभी ख़बरें निराश करने वाली ही हैं, लेकिन इन दिनों बेरोज़गारी में इजाफ़े के साथ ही सबसे बड़ी और बुरी ख़बर यह है कि आम आदमी को महंगाई से राहत मिलने के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं।
सितंबर महीने में महंगाई यानी मुद्रास्फीति की जो दर 7.34 फीसदी के रिकाॅर्ड स्तर पर पहुंच गई थी उसका सबसे बड़ा कारण था खाद्य वस्तुओं यानी खाने-पीने के जरूरी सामान का महंगा हो जाना।
खुदरा महंगाई 14.12 प्रतिशत बढ़ गई है, सब्जियों की कीमतों में 60 प्रतिशत का इजाफ़ा हुआ है। यह ऐसे समय हुआ है जब वित्त मंत्री बजट तैयार करने में मशगूल हैं। प्रधानमंत्री चुप हैं तो गृह मंत्री नागरिकता क़ानून को सख़्ती से कुचलने में लगे हुए हैं। क्या अर्थव्यवस्था से ध्यान हटाने के लिए यह सब हो रहा है? सत्य हिन्दी पर देखें प्रमोद मल्लिक का विश्लेषण।
पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि होने के आसार हैं, जिससे पूरी अर्थव्यवस्था चरमरा सकती है। आख़िर क्यों ऐसा होगा और सरकार क्या करेगी? सरकार ने इस स्थिति से बचने के लिए क्या तैयारी की है? सत्य हिन्दी पर देखें प्रमोद मल्लिक का विश्लेषण।
ऐसे समय जब सरकार बार-बार कह रही है कि अर्थव्यवस्था में कुछ भी गड़बड़ नही है, खाद्य वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इससे जुड़ा थोक मूल्य सूचकांक नवंबर में 11.1 प्रतिशत बढ़ गया। यह पिछले 71 महीने के उच्चतम स्तर पर है।