न्यूज़ चैनलों की बरबादी के लिए टीआरपी की भूमिका को ज़्यादा महत्व देने या उसे ही पूरी तरह से गुनहगार साबित करने से पहले हमें मीडिया उद्योग का अध्ययन भी करना चाहिए। यह जानना बहुत ज़रूरी है कि इस उद्योग में पूँजी कहाँ से आई, किन उद्देश्यों से आई और इसकी वज़ह से मीडिया में क्या परिवर्तन आए।
TRP का दुष्चक्र-5: मीडिया में पूँजी कहाँ से आई और क्यों?
- मीडिया
- |

- |
- 31 Oct, 2020


न्यूज़ चैनलों के पतन में केवल टीआरपी ही ज़िम्मेदार नहीं थी या है। टीआरपी की भूमिका बहुत सीमित सी है। टीआरपी बाज़ार का एक प्रभावी अस्त्र ज़रूर है, मगर बाज़ार के पीछे खड़ी पूँजी के उद्देश्य बड़े और विविधतापूर्ण हैं। टीआरपी पर सत्य हिंदी की शृंखला की पाँचवीं कड़ी में पढ़िए, मीडिया उद्योग में पूँजी कहाँ से आई और इसकी वज़ह से मीडिया में क्या परिवर्तन आए...
नवउदारवाद ने अपने दर्शन को फैलाने और उसे स्वीकार्य बनाने के लिए मीडिया का जमकर इस्तेमाल किया और अभी भी कर रहा है। लेकिन इस महत्वाकांक्षी परियोजना की सफलता के लिए ज़रूरी था कि मीडिया इंडस्ट्री को शक्तिशाली बनाया जाए, उसका विस्तार किया जाए। एक शक्तिशाली और अवाम के दिल-ओ-दिमाग़ में गहरी पैठ रखनेवाला मीडिया ही उदारवाद के लिए अनुकूल माहौल बना सकता था, नागरिक समाज को उपभोक्ता समाज में तब्दील करने में योगदान कर सकता था।
आर्थिक उदारवाद की इस आवश्यकता को भारतीय मीडिया ने शुरू में थोड़ी आशंकाओं के साथ लिया। ख़ास तौर पर प्रिंट मीडिया में इसको लेकर एक तरह का बँटवारा जैसा देखने को मिला। कुछ बड़े औद्योगिक घराने तो इससे बेहद उत्साहित हो गए। उन्हें लगा कि इससे वे लोकल से ग्लोबल की छलाँग लगा सकेंगे। लेकिन बहुत से संस्थान विरोध में भी थे। इसीलिए शुरुआत में सरकार विदेशी निवेश के नियमों को ढीला करने में हिचकती रही।


























