हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के कमांडर और महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद को मुखबिरी करके मरवाने वाले का नाम था वीरभद्र तिवारी। वीरभद्र तिवारी भी HSRA का सदस्य था और दल की क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल रहा था। आज़ाद की शहादत के बाद सज़ा देने के लिए क्रांतिकारी दल के सदस्य रमेशचंद्र गुप्ता ने उरई में वीरभद्र तिवारी पर गोली चलाई लेकिन उसकी जान बच गयी। रमेशचंद्र गुप्ता पकड़े गये और उन्हें दस साल की सज़ा मिली।
वीरभद्र तिवारी को इसलिए स्वतंत्रता सेनानी नहीं माना जा सकता कि एक समय वह चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह का साथी था। उसकी मुखबिरी का कुकर्म ही इतिहास में उसकी पहचान है। केंद्र सरकार ने 1972 में स्वतंत्रता सेनानियों को पेंशन तथा कई सुविधाएँ देने की योजना लागू की तो इसका पात्र होने के लिए स्वतंत्रता आंदोलन में जेल जाने के अलावा कभी ‘विश्वासघात न करने’ की शर्त भी थी। नियमों में कहा गया कि ब्रिटिश सरकार के साथ समझौता करने, माफ़ी माँगने या स्वतंत्रता सेनानियों के ख़िलाफ़ गवाही देने वालों को इसका पात्र नहीं माना जाएगा। ज़ाहिर है न वीरभद्र तिवारी को स्वतंत्रता सेनानी नहीं माना गया और न उसके परिजनों को स्वतंत्रता सेनानी आश्रित पेंशन लायक़ माना गया। ऐसा सोचना भी हास्यास्पद था।


























