संयोग से अघोषित आपातकाल पर लिखते समय भारत -पाक झड़पों का सिलसिला, अहमदाबाद में बोईंग हादस में 270 से अधिक लोगों की मृत्यु ने मोदी+शाह सरकार की शासन शैली को झकझोर कर रख दिया है। गृह मंत्री अमित शाह का कथन विवादों में घिर गया है। दूसरी तरफ भारत और पाकिस्तान के अपने अपने दावे हैं। मेरी दृष्टि में दोनों देशों के शासक वर्गों के लिए कश्मीर एक ’सत्ता प्रयोग शाला’ बना हुआ है। आज से नहीं, 1947 के भारत विभाजन के समय से। मेरे लिए यह पहला अवसर है जब दोनों पड़ोसी देशों के बीच हिंसक विस्फोट के क्षणों में मैं विदेश में हूँ। वरना, 1962, 65, 71 और 1999 की जंगों के समय भारत में था। उस दौर में जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और अटलबिहारी वाजपेयी के शासन काल थे। प्रेस की स्वतंत्रता थी। (इंदिरा शासन को छोड़कर) सेंसरशिप नहीं थी। लेकिन, सुरक्षा से सम्बंधित ख़बरों को लेकर सतर्कता ज़रूर बरती जाती थी। लेकिन, आज़ मोदी शासन काल के माहौल की धड़कनों को 15 हज़ार किलो मीटर के फासले से ही अनुभव कर सकता हूँ।
1975 की इमरजेंसी: मोदी-शासन का अघोषित आपातकाल!
- विचार
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- 25 Jun, 2025

Emergency 1975: क्या आज का भारत 1975 की इंदिरा गांधी की इमरजेंसी की याद दिलाता है? विपक्ष का आरोप है कि मोदी सरकार ने देश को अघोषित आपातकाल में धकेल दिया है। पढ़िए, आपातकाल पर रामशरण जोशी के लेखों की शृंखला की तीसरी कड़ी।
अनुभव - यात्रा की दृष्टि से मुझे भाग्यशाली कहा जा सकता है; 1975 के घोषित आपातकाल से 2025 तक के अघोषित आपातकाल के अनुभवों के साथ चलता चला आ रहा हूँ। मुख़्तसर से, जब देश में 1. राज्य और जनसमाज के मध्य संवादहीनता पसरती दिखाई दे, 2. सामान्य जन असुरक्षित, अव्यक्त व वंचित महसूस करे, 3. कानून -व्यवस्था के नाम पर चारों ओर राजसत्ता का आतंक उभरने लगे, 4. संविधानेतर शक्तियों की सामाजिक स्वीकृति दिखाई दे, 5. लोकतांत्रिक व संवैधानिक संस्थाओं का निर्बलीकरण की प्रक्रिया शुरू हो जाए, 6. नेतृत्व को राष्ट्र का पर्याय व अवतारी माना जा रहा हो, 7. व्यक्तिपूजा का चरमोत्कर्ष रहे, 8. बहुसंख्यकवाद की आक्रामकता और अल्पसंख्यक समाज का हाशियाकरण की प्रवृत्तियों का विस्फोट रहे, 9. देश -धर्म को निरंतर संकटग्रस्त चित्रित किया जाने लगे, 10. बाहरी आक्रमण का भय-निर्माण, कार्यपालिका-विधायिका - न्यायपालिका के मध्य विसंगतिपूर्ण संबंध, 11. मिथकीय प्रतीकों -लक्षणों का यथार्थीकरण व महिमामंडन, 12. नागरिक का विवेक -अनुकूलन, 13. इतिहास का पुनर्लेखन व आधुनिक ज्ञान- सम्पदा का निषेधीकरण, 14. एकाधिकारवादी शक्तियों को संरक्षण, आर्थिक विषमता की उपेक्षा व राज्य आश्रिता को प्रोत्साहन और मुक्त अर्थव्यवस्था (लेस्सिएर फ्रेइरे) की दिशा में अग्रसर 15. सरकार का ‘माई-बाप’ में रूपांतरण, और 16. मीडिया द्वारा सत्ता - वंदना जैसी प्रवृत्तियों का परिदृश्य बनता जा रहा हो, तब अघोषित आपातकाल का एहसास चेतनशील व संवेदनशील नागरिक को दबोचने लगता है। 2014 से मोदी-शासन काल में यह एहसास गहराया ही है।