पूरे देश में क्या समान नागरिक संहिता को लाना संभव है? जहाँ कुछ राज्य इसके पक्ष में प्रस्ताव ला रहे हैं तो कुछ कुछ राज्य विरोध में। जानिए किस आधार पर मिज़ोरम विधानसभा ने विरोध में प्रस्ताव पास किया।
बैठक में अदालतों से दरख्वाशत की गई की वह कानूनों को लागू करवाने वाली संस्था होने के नाते गरीब, मजलूम और अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों को रोके, क्योंकि अदालत ही किसी भी इंसान की आखिरी उम्मीद होती है।
राज्यसभा में यूनिफॉर्म सिविल कोड पर प्राइवेट बिल पेश किया गया है। इसे बीजेपी सांसद ने पेश किया है। लेकिन केंद्र सरकार भी तो यह बिल पेश कर सकती थी। उसने प्राइवेट बिल की आड़ क्यों ली। इसी सवाल और इससे जुड़ी बातों को तलाशती यह विशेष रिपोर्टः
समान नागरिक संहिता लाने के अमित शाह के बार-बार के वादे से लगता है कि बीजेपी में किसी तरह की हताशा झलक रही है। क्या इसका मतलब यह है कि राम मंदिर पहले ही अपनी मतदान क्षमता को पार कर चुका है?
अमित शाह ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों ने संविधान सभा की सलाह को भुला दिया और बीजेपी के अलावा कोई भी राजनीतिक दल यूनिफॉर्म सिविल कोड के पक्ष में नहीं है।
हिंदुत्व का बड़ा पैरोकार कौन? इस लड़ाई में जब बीजेपी ने गुजरात चुनाव से पहले समान नागरिक संहिता लाने का दांव चला तो जानिए आम आदमी पार्टी ने क्या चाल चली।
गुजरात की बीजेपी सरकार ने यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए एक कमेटी के गठन का एलान किया है। लेकिन समझना होगा कि समान नागरिक संहिता क्या है और इसका विरोध आखिर क्यों होता है?
देवबंद में आयोजित जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के जलसे के दूसरे दिन यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी) को खारिज कर दिया गया। मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि मुसलमान अपनी शरीयत में कोई दखल नामंजूर कर देगा। जमीयत के मंच से और भी कई बातें कहीं गईं।
उत्तराखंड ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अपना कदम आगे बढ़ाया है। उसने एक ड्राफ्ट कमेटी का गठन किया है। हालांकि यूसीसी के मुद्दे पर बीजेपी चुप है, जबकि 2019 के आम चुनाव में उसका यह वादा था।
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने यूनिफॉर्म सिविल कोड का सीधा विरोध करने की बजाय इसके ड्राफ्ट को सार्वजनिक करने की मांग की है, ताकि मुसलमान इस पर चर्चा कर सकें और सलाह दे सकें। शिया बोर्ड की यह मांग अन्य मुस्लिम संगठनों से अलग हटकर है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड पर असम के सीएम के बयान पर सीपीएम नेता ने उन्हें बुरी तरह फटकारा है। उन्होंने कहा कि आरएसएस-बीजेपी इसकी आड़ में जानबूझकर मुसलमानों को टारगेट कर रहे हैं। इसीलिए उनके नेता आए दिन इस मुद्दे पर फर्जी बयान देते हैं।
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता किस मक़सद से लागू करने की बात की जा रही है? क्या कोई राज्य अपने दम पर ऐसा कर सकता है? अगर ये कानून लागू हो जाता है तो हिंदुओं को उससे क्या हासिल होगा? क्या इससे उन्हें कोई नुक़सान भी हो सकता है?